Friday, 30 July 2021

तिश्नगी

चलो चलें कहीं, उन फिजाओं में.....

इक तड़प, इक तिश्नगी, सी है छाई,
सिमट सी आई, है ये तन्हाई,
घुटन सी है, इन हवाओं में,
चलो चलें कहीं.......

कितनी बातें, करती हैं ये खामोशी,
हवाओं नें, की है ये सरगोशी,
चुभन सी है, ऐसी बातों में,
चलो चलें कहीं.......

यूँ, कब तलक, तरसाए, ये तिश्नगी,
मार ही डाले, न ये, आवारगी,
अगन सी है, इन सदाओं में,
चलो चलें कहीं.......

इक गिरह सी, बंध चुकी है अन्दर,
रुक पाए, पर कहाँ ये समुन्दर,
सीलन सी है, इन दरारों में, 
चलो चलें कहीं.......

चलो चलें कहीं, उन फिजाओं में.....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
.....................................................
तिश्नगी: प्यास, लालसा, तड़प, उत्कंठा, तमन्ना, तीव्र इच्छा, अभिलाषा

14 comments:

  1. यूँ, कब तलक, तरसाए, ये तिश्नगी,
    मार ही डाले, न ये, आवारगी,
    अगन सी है, इन सदाओं में,
    चलो चलें कहीं.......
    बहुतही सुंदर

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 01 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. कितनी बातें, करती हैं ये खामोशी,
    हवाओं नें, की है ये सरगोशी,
    चुभन सी है, ऐसी बातों में,
    चलो चलें कहीं.......गहन रचना।

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  4. ये तिश्नगी बहुत खराब चीज़ है ।
    यूँ बहुत भावपूर्ण लिखा ,सुंदर अभिव्यक्ति
    थोड़ा ठंडा पानी पी लें फिर जाएँ । 😄😄

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  5. पढ़ते-पढ़ते बस ठहर जाना होता है ... इस तरह से बांध देता है । अति सुन्दर सृजन ।

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  6. कितनी बातें, करती हैं ये खामोशी,
    हवाओं नें, की है ये सरगोशी,
    चुभन सी है, ऐसी बातों में,
    चलो चलें कहीं......बहुत सुंदर एहसासों का भावपूर्ण वर्णन।

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