Saturday, 3 July 2021

मन भरा-भरा

मन, क्यूँ भरा-भरा सा है...
गीत, सावन ने, अभी तो, गाया जरा सा है!

यकीं था कि, पाषाण है, ये मन मेरा!
सह जाएगा, ये चोट सारा,
झेल जाएगा, व्यथा का हर अंगारा,
लेकिन, व्यथा की एक आहट,
पर ये भर्राया सा है!

मन, क्यूँ भरा-भरा सा है...
गीत, सावन ने, अभी तो, गाया जरा सा है!

भरम था कि, अथाह है ये मन मेरा!
जल, पी जाएगा ये खारा,
लील जाएगा, ये गमों का फव्वारा,
लेकिन, बादल की गर्जनाओं,
पर ये थर्राया सा है!

मन, क्यूँ भरा-भरा सा है...
गीत, सावन ने, अभी तो, गाया जरा सा है!

गिरी, इक बूँद, टूटा भरम ये सारा!
छूटा, मन पे यकीं हमारा,
लबा-लब सी भरी, मन की धरा,
बेवश, खड़ा हूँ किनारों पर,
मन, चरमराया सा है!

मन, क्यूँ भरा-भरा सा है...
गीत, सावन ने, अभी तो, गाया जरा सा है!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

14 comments:

  1. वाह! भावों के ऊहापोह को सुंदरता से गूँथा है आपने पंक्तियों में। बहुत सुंदर आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  2. बहुत ही सुंदर रचना

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(4-7-21) को "बच्चों की ऊंगली थामें, कल्पनालोक ले चलें" (चर्चा अंक- 4115) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. वाह बेहद खूबसूरत रचना...

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  5. सुंदर शब्दों से गुम्फित खूबसूरत रचना। खासकर ये पंक्तियाँ अद्भुत है:
    गिरी, इक बूँद, टूटा भरम ये सारा!
    छूटा, मन पे यकीं हमारा,
    लबा-लब सी भरी, मन की धरा,
    बेवश, खड़ा हूँ किनारों पर,
    मन, चरमराया सा है!
    साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद महोदय। विनम्र आभार

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  6. यकीं था कि, पाषाण है, ये मन मेरा!
    सह जाएगा, ये चोट सारा,
    झेल जाएगा, व्यथा का हर अंगारा,
    लेकिन, व्यथा की एक आहट,
    पर ये भर्राया सा है....बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
    सादर

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद । विनम्र आभार आदरणीया

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  7. मन, क्यूँ भरा-भरा सा है...
    गीत, सावन ने, अभी तो, गाया जरा सा है!
    सच है सावन के आते ही ना जाने कैसे स्मृतियाँ मन को भाव विहल करने लगती हैं | याओं का मौसम बन जाता है सावन का महीना और बरसात |सुंदर रचना के लिए बधाई |

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    1. अभिनन्दन व विनम्र आभार आदरणीया रेणु जी।

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