हम तो ठहरे, अन्जाने,
नारायण ही जाने, वो क्या-क्या जाने!
इक उम्र को, झुठलाते,
विस्मित करती, उनकी न्यारी बातें,
कुछ, अनहद प्यारी,
कुछ, उम्मीदों पर भारी!
नारायण ही जाने......
बातें, या जीवन दर्शन,
वो ओजस्वी वक्ता, हम श्रोतागण,
वो शब्द, अर्थ भरे,
जाने क्यूँ, निःशब्द करे!
नारायण ही जाने......
उनकी, बातों में कान्हा,
उनकी, शब्दों में कान्हा सा गाना,
शायद, वो हैं राधा,
व्यथा, कहे सिर्फ आधा!
नारायण ही जाने......
जाने वो, क्षणिक सुख!
पर वो, भटके ना, उनके सम्मुख,
अनबुझ सी, प्यास,
या, प्रज्ज्वलित सी आस!
नारायण ही जाने......
हम तो ठहरे, अन्जाने,
नारायण ही जाने, वो क्या-क्या जाने!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)