धुंधलाते राहों पर, आ न सके तुम,
ओझल थे हम, गुम थे तुम!
वैसे, कौन भला, धुँधली सी राह चला,
जब, उजली सी, किरणों ने छला,
भरोसा, उन धुँधलाते सायों पर क्या!
इक धुंधलाते, काया थे हम,
गुम होती, परछाईं तुम!
तुम से मिलकर, इक उम्मीद जगी थी,
धुंधली राहों पर, आस जगी थी,
पर बोझिल थे पल, होना था ओझल!
धूँध भरे इक, बादल थे हम,
इक भींगी, मौसम तुम!
अब भी पथराई आँखें, तकती हैं राहें,
धुंधलाऐ से पथ में, फैलाए बाहें,
धुंधला सा इक सपना, बस है अपना!
उन सपनों में, खोए से हम,
और अधूरा, स्वप्न तुम!
धुंधलाते राहों पर, आ न सके तुम,
ओझल थे हम, गुम थे तुम!
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