करे मन, अजनबी सी कल्पना,
चाहे क्यूँ पतंगा, उसी आग में जलना!
रचे प्रपंच कोई, करे कोई षडयंत्र,
बुलाए पास कोई, पढ़कर मंत्र,
जगाए रात भर, जलाए आँच पर,
हर ले, सुधबुध, रखे बांध कर,
न चाहे, फिर भी, छूटना!
करे मन, अजनबी सी कल्पना,
चाहे क्यूँ पतंगा, उसी आग में जलना!
ये कैसा अर्पण, कैसा ये समर्पण,
ये कैसी चाहत, ये कैसा सुखन,
दहकती आग में, जले है इक तन,
सदियों, वाट जोहे कैसे विरहन,
न जाने, ये कैसी, साधना!
करे मन, अजनबी सी कल्पना,
चाहे क्यूँ पतंगा, उसी आग में जलना!
ढ़ूंढ़े मझधार मध्य, इक सुखसार,
बसाए, धार मध्य, कोई संसार,
भिगोए एहसास, धरे इक विश्वास,
रचे गीत, डूबती, हर इक साँस,
न छूटे, मन का ये अंगना!
करे मन, अजनबी सी कल्पना,
चाहे क्यूँ पतंगा, उसी आग में जलना!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)