Showing posts with label गँवारा. Show all posts
Showing posts with label गँवारा. Show all posts

Thursday, 20 September 2018

कहकशाँ

तुम हो, अस्तिव है कहीं न कहीं तुम्हारा....

बादलों के पीछे, उस चाँद के सरीखे,
छुपती छुपाती, तू ही तू बस दिखे,
मन को न इक पल भी गंवारा,
कि अस्तिव, कहीं भी नही है तुम्हारा....

तुम हो, अस्तिव है कहीं न कहीं तुम्हारा....

होती न तुम तो, बरसते न मेघ ऐसे,
उड़ते न फिर, मेघों से केश ऐसे,
भटकते न, बादल ये आवारा,
न ही भीगता, बेजार सा ये मन बेचारा...

तुम हो, अस्तिव है कहीं न कहीं तुम्हारा....

तारों की पूंज में, कहीं तुम हो छुपी,
हो रही है जहाँ, मद्धम सी रौशनी,
चमकती वो आँखे ही हैं तेरी,
है तुमसे ही, कहकशाँ सा सुंदर नजारा....

तुम हो, अस्तिव है कहीं न कहीं तुम्हारा....

रिमझिम हुई, जब कहीं भी बारिशें,
राग मल्हार जब कहीं भी छिड़े,
खनकी है आवाज बस तेरी,
बजते हैं सितार, हो जैसे सुर तुम्हारा.... 

तुम हो, अस्तिव है कहीं न कहीं तुम्हारा....

..............................................................
कहकशाँ का अर्थ :
- आकाश में दूरस्थ तारों का ऐसा समूह जो धुँधले बादल जैसा दिखाई देता है; आकाशगंगाछायापथ; (मिल्की वे)।