Showing posts with label निरख. Show all posts
Showing posts with label निरख. Show all posts

Saturday, 22 September 2018

अपरिचित

ओ अपरिचित, अपना कुछ परिचय ही दे जाओ....

विस्मित हूँ निरख कर मैं वो स्मित,
बार-बार निरखूं, मैं इक वो ही अपरिचित,
हिय हर जाओ, चित मेरा ले जाओ,
विस्मित फिर से कर जाओ...

ओ अपरिचित, अपना कुछ परिचय ही दे जाओ....

हो कौन तुम? क्यूँ ऐसे मौन तुम?
पा लूं परिचय, कुछ बोलो तो अपरिचित,
संवाद करो, कुछ अपनी बात कहो,
आसक्त मुझे फिर कर जाओ....

ओ अपरिचित, अपना कुछ परिचय ही दे जाओ....

उद्दीप्त हुए, इस मन में दीप कई,
दीपक का उद्दीपन, तुमसे है अपरिचित,
प्रकाश भरो, तम इस रात के हरो,
असंख्य दीप फिर ले आओ.....

ओ अपरिचित, अपना कुछ परिचय ही दे जाओ....