Tuesday, 3 November 2020

निर्मम, जाने न मर्म!

निर्दयी बड़ी, सर्द सी ये पवन?
निर्मम, जाने न मर्म!

ढ़ँक लूँ, भला कैसे ये घायल सा तन!
ओढूं भला कैसे, कोई आवरण!
दिए बिन, निराकरण!
टटोले बिना, टूटा सा अंतः करण,
ले आए हो, ठिठुरण!

निर्मम, जाने न मर्म......

हो चले थे सर्द, पहले ही एहसास सारे!
चुभोती न थी, काँटों सी चुभन!
दुश्वार कितने, हैं क्षण!
जाने बिना, पल के सारे विकर्षण,
ले आए हो, ठिठुरण!

निर्मम, जाने न मर्म......

गर, सुन लेते मन की, तो आते न तुम!
दर्द में सिहरन, यूँ बढ़ाते न तुम!
दे गई पीड़, तेरी छुअन!
सर्द आहों में भर के, सारे ही गम,
ले आए हो, ठिठुरण!

निर्दयी बड़ी, सर्द सी ये पवन?
निर्मम, जाने न मर्म!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

18 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 03 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-11-2020) को   "चाँद ! तुम सो रहे हो ? "  (चर्चा अंक- 3875)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- सुहागिनों के पर्व करवाचौथ की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  3. गर, सुन लेते मन की, तो आते न तुम!
    दर्द में सिहरन, यूँ बढ़ाते न तुम!
    दे गई पीड़, तेरी छुअन!
    सर्द आहों में भर के, सारे ही गम,
    ले आए हो, ठिठुरण!

    निर्दयी है बड़ी, सर्द सी ये पवन?
    निर्मम, जाने न मर्म!

    वाह बहुत सुंदर

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सधु जी।

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 4 नवंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. Replies
    1. एक अर्से बाद... पुनः स्वागत है आदरणीया सदा जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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  7. bahut achhi article likhi hai aapne
    subah jaldi kaise uthe

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