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Sunday, 6 March 2016

कर्ण सा दुर्भाग्य किसी का न हो!

हाय! ये भाग्य कैसा पाया था उस कुन्तीपुत्र कर्ण नें?

कोख मिला कुन्ती का किन्तु, कुन्ती पुत्र न कहलाया,
जिस माता ने जन्म दिया, उसने ही उसको ठुकराया,
कुल रत्न होकर भी,  कुल का यशवर्धन न बन पाया,
आह! विडम्बना ये कैसी,जीवन की कैसी है ये माया।

हाय! ये भाग्य कैसा पाया था उस दानवीर कर्ण नें?

उपाधि सूर्यपुत्र की पर,सूतपुत्र जीवन भर कहलाया,
कर्मों से बड़ा दानवीर पर, ग्यान का दान न ले पाया,
दान कवच-कुंडल का उससे, इंन्द्र नें कुयुँकर मांगा,
आह! ये कैसी विधाता की लीला, ये कैसी है माया।

हाय! ये भाग्य कैसा पाया था उस सूर्यपुत्र कर्ण नें?

ग्यान गुरू का पाने को,  कह गया छोटी सी झूठ वो,
सूत पूत्र के बदले खुद को, कह गया ब्राह्मण पूत्र वो,
शापित हुआ गुरू से तब, बना जीवन का कलंक वो,
अन्त समय जो काम न आया,पाया उसने ग्यान वो।

हाय! ये भाग्य कैसा पाया था उस महाग्यानी कर्ण नें?