Wednesday, 29 January 2020

अन्तिम शब्द तेरे

शब्द वो! 
अन्तिम थे तेरे....

कोई हर्फ, नहीं, 
गूंजती हुई, इक लम्बी सी चुप्पी,
कँपकपाते से अधर,
रूँधे हुए स्वर,
गहराता, इक सूनापन,
सांझ मद्धम,
डूबता सूरज,
दूर होती, परछाईं,
लौटते पंछी,
खुद को, खोता हुआ मैं,
नम सी, हुई पलकें,
फिर न, चलके,
कभी थी, वो सांझ आई,
वो हर्फ,
खोए थे, मेरे!

शब्द वो!
अन्तिम थे तेरे....

वही, संदर्भ,
शब्दविहीन, अन्तहीन वो संवाद,
सहमा सा, वो क्षण,
मन का रिसाव,
टीसता, वही इक घाव,
घुटती चीखें,
कैद स्वर,
न, मिल पाने का डर,
उठता सा धुआँ,
धुँध में, कहीं खोते तुम,
कहीं मुझमें होकर, 
गुजरे थे, तुम,
हर घड़ी, गूँजते हैं अब,
वो हर्फ, 
जेहन में, मेरे!

शब्द वो! 
अन्तिम थे तेरे....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 29 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.1.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3596 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय विर्क जी।

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  3. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय प्रकाश जी।

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  4. बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी रचना !

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  5. बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी रचना ।
    अहसास समेटे।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कूसुम जी।

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  6. वही, संदर्भ,
    शब्दविहीन, अन्तहीन वो संवाद,
    सहमा सा, वो क्षण,
    मन का रिसाव,
    टीसता, वही इक घाव,
    घुटती चीखें,
    कैद स्वर,
    बहुत ही उत्कृष्ट सृजन हमेशा की तरह...
    पर आज हमेशा से कुछ हटकर
    वाह!!!

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    1. कुछ नया लिखने की कोशिश भर है । बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सुधा देवरानी जी।

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