Monday, 1 March 2021

तोड़ो ये भ्रम

मुड़ कर, देखते हो क्या?

अपनों से, नाते तोड़ कर,
खुद, तुम ही गए, सब छोड़ कर,
मुँह, मोड़ कर,
अंजान पथ,
अब सामने है, गहरी सी खाई,
पीछे, बस एक परछाईं,
ये दुनियाँ पराई!

मुड़ कर, देखते हो क्या?

पथ एक, तुम ने ही चुना,
खूब दौड़े, कर के सब अनसुना,
अलग ही राह,
गिला, कैसा,
जब सामने है, अंधा सा कुआं,
पीछे, हारा इक जुआ,
वो दुनियाँ कहाँ!

मुड़ कर, देखते हो क्या?

सब हैं पराए, कौन अपना,
परख लो, जिनको तुमने था चुना,
तोड़ो, ये भ्रम,
लौट आओ,
अब सामने है, पराया सा वन,
पीछे, एक अपनापन,
ये दुनियाँ तेरा!

मुड़ कर, देखते हो क्या?

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

16 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-3-21) को "बहुत कठिन है राह" (चर्चा अंक-3993) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. आदरणीय कामिनी जी, आपसे सतत प्रेरणा पाकर अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  2. परिंदे नहीं आते लौट कर । सुंदर अभिव्यक्ति ।

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    1. आदरणीया संगीता जी, आपके प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  3. तोड़ो, ये भ्रम,
    लौट आओ,
    अब सामने है, पराया सा वन,
    पीछे, एक अपनापन

    कोमल भावनाओं से ओतप्रोत बहुत सुंदर रचना...

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    1. आदरणीया डा. शरद जी, आपके प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 3 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीय पम्मी जी, आपसे सतत प्रेरणा पाकर अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  5. सही कहा नियति जब स्वयं ने चुनी तो फिर मुड़ कर किसे देखते हो।
    सार्थक सृजन।

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    1. आदरणीया कुसुम जी, आपके प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  6. कोमल भावनाओं से ओतप्रोत सृजन अति उत्तम।

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    1. आदरणीया उर्मिला जी, आपके प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  7. सब हैं पराए, कौन अपना,
    परख लो, जिनको तुमने था चुना,
    तोड़ो, ये भ्रम,
    लौट आओ,
    अब सामने है, पराया सा वन,
    पीछे, एक अपनापन,
    ये दुनियाँ तेरा!
    स्पर्शी रचना।

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    1. आदरणीया सधु जी, आपके प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  8. मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति है यह आपकी पुरुषोत्तम जी ।

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    1. आदरणीय माथुर जी, प्रेरक प्रतिक्रिया हेतु आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद।

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