फिर, करूँ जरा, जिक्र आपका!
झील सी, दो नीली आँखें,
झुकी, पर्वतों पर, अलसाई सी पलकें,
कजराए नैनों में, नींदों के पहरे,
कुछ, तुझे कहने से पहले,
जिक्र थोड़ा,
बादलों का, कर लूँ!
फिर, करूँ जरा, जिक्र आपका!
अधखुली सी, दो पंखुड़ी,
फिर, करूँ जरा, जिक्र आपका!
अधखुली सी, दो पंखुड़ी,
किसी शाख पर, विहँस कर, हों पड़ी,
यूँ भींग कर, हो रही शबनमी,
कुछ, तुझे कहने से पहले,
जिक्र थोड़ा,
गुलाबों का, कर लूँ!
फिर, करूँ जरा, जिक्र आपका!
आभामयी, जैसे चांदनी,
अक्स, ज्यूँ अंधेरों में, प्रदीप्त रौशनी,
जली अनवरत, दीये की नमीं,
कुछ, तुझे कहने से पहले,
जिक्र थोड़ा,
पूजा का, कर लूँ!
फिर, करूँ जरा, जिक्र आपका!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteसुंदर भावों की अनुपम अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteवाह लाजबाव सृजन
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteविनम्र आभार
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