Saturday 12 June 2021

प्रवाह में

उजली सी, राह में,
जिन्दगी के, इस प्रवाह में, 
बाकी रह गई,
इक अजनबी सी, 
चाह शायद!

है बेहद, अजीब सा मन!
हासिल है सब,
पर अजीज है, बस चाह वो,
है अजनबी,
पर है, खास वो,
दूर है,
पर है, पास वो,
ख्वाब है,
कर रहा, है बेताब वो,
कुछ फासलों से,
यूँ, गुजर चुके हैं, चाह शायद!

सफर में, साथ में,
वही तस्वीर लिए, हाथ में, 
बाकी रह गई,
इक अजनबी सी, 
चाह शायद!

मौन है वो, पर गौण नहीं!
ये तोलती है मन,
झकझोरकर, टटोलती है मन,
कभी, सुप्त वो,
है कभी, जीवन्त वो,
अन्तहीन सा,
प्रवाह, अनन्त वो,
आस-पास वो,
मन ही, किए वास वो,
कभी, आहटों से,
तोड़ती है मौन, चाह शायद!

ज्वलन्त रात में,
जलते वही हैं, चाह शायद!
बाकी रह गई,
कोई अजनबी सी,
चाह शायद!

अजनबी सी, इस राह में!
यूँ तो, मिला था,
कई अजनबी सी, चाह से,
कुछ, प्रबल हुए,
कुछ, बदल से गए,
कुछ, गुम हुए,
कुछ, पीछे ही पड़े,
रूबरू हो कर,
इस राह में,
कई अलविदा, कह गए,
अजनबी से कुछ,
अब भी बचे, चाह शायद!

मन की वादियों में,
वही ढूंढते हैं, राह शायद!
बाकी रह गई,
कोई अजनबी सी,
चाह शायद!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

13 comments:

  1. बहुत सुन्दर !
    चातक की प्यास तो स्वाति नक्षत्र की बूँद ही बुझा सकती है.

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  2. मन की वादियों में,
    वही ढूंढते हैं, राह शायद!
    बाकी रह गई,
    कोई अजनबी सी,
    चाह शायद... बहुत ही सुंदर

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  3. वाह! सुंदर अभिव्यक्ति 👌
    सादर प्रणाम सर 🙏

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  4. बाकी रह गयी ये अजनबी सी चाह हमेशा मन को उद्वेलित करती है...
    है बेहद, अजीब सा मन!
    हासिल है सब,
    पर अजीज है, बस चाह वो,
    है अजनबी,
    पर है, खास वो,
    दूर है,
    पर है, पास वो,
    ख्वाब है,
    कर रहा, है बेताब वो,
    कुछ फासलों से,
    यूँ, गुजर चुके हैं, चाह शायद!
    बहुत सुन्दर ...
    लाजवाब
    वाह!!!

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  5. सफर में, साथ में,
    वही तस्वीर लिए, हाथ में,
    बाकी रह गई,
    इक अजनबी सी,
    चाह शायद!
    बहुत खूब अप्रतिम

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  6. वाह! शानदार !


    मौन है वो, पर गौण नहीं!
    ये तोलती है मन,
    झकझोरकर, टटोलती है मन,
    कभी, सुप्त वो,
    है कभी, जीवन्त वो,
    अन्तहीन सा,
    प्रवाह, अनन्त वो,
    आस-पास वो,
    मन ही, किए वास वो,
    कभी, आहटों से,
    तोड़ती है मौन, चाह शायद...बहुत सुंदर ।

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  7. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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