जागती आँखों में, कोई सपना तो होगा!
इसलिए, वो जागता होगा!
वो भला, सो कर क्या करे!
जिन्दा, क्यूँ मरे?
जीने के लिए,
वो शायद, जागता होगा!
जागती आँखों में, कोई सपना तो होगा!
क्या ना कराए, दो रोटियाँ!
दर्द, सहते यहाँ!
उम्मीदें लिए,
वो शायद, जागता होगा!
जागती आँखों में, कोई सपना तो होगा!
यूँ जिक्र में, फिक्र कल की!
जागते, छल की,
आहटें लिए,
वो शायद, जागता होगा!
जागती आँखों में, कोई सपना तो होगा!
फिर भी, जीतने की जिद!
वही, जद्दो-जहद,
ललक लिए,
वो शायद, जागता होगा!
जागती आँखों में, कोई सपना तो होगा!
जलाकर, उम्मीदों के दिए!
आस, तकते हुए,
चाहत लिए,
वो शायद, जागता होगा!
जागती आँखों में, कोई सपना तो होगा!
इसलिए, वो जागता होगा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01-07-2021को चर्चा – 4,112 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
विनम्र आभार
Deleteमार्मिक पंक्तियाँ 👌
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteदिल में उतरती हुई रचना
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteदिल को छूती रचना। दो रोटी क्या क्या करवाती है इसका बहुत ही सुंदर चित्रण किया है आपने, पुरुषोत्तम भाई।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी शब्द चित्र ...
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteजलाकर, उम्मीदों के दिए!
ReplyDeleteआस, तकते हुए,
चाहत लिए,
वो शायद, जागता होगा!
बेहद मार्मिक सृजन... सादर नमन आपको
विनम्र आभार
Deleteमर्मस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteआँखों में जब तक सपने रहते हैं पूरा करने के चाह रहती है ... जागना पढता है उनके लिए भी और दो रोटियों के लिए भी ...
ReplyDeleteमर्म को छूती हुयी रचना है ...
विनम्र आभार
Deleteक्या ना कराए, दो रोटियाँ!!!!
ReplyDeleteएक विपन्नता से घिरे इंसान और उससे भी बढ़कर एक गरीब बालक का स्वप्न और यथार्थ इन्ही दो रोटियों में सिमट जाता है | पुरुषोत्तम जी , लीक से हटकर इस मार्मिक सृजन के लिए निशब्द हूँ | ना जाने क्यों मन को बेध गये आपके शब्द | सादर
अभिनन्दन व विनम्र आभार आदरणीया रेणु जी।
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