Sunday, 13 June 2021

झिझक

झिझक, संकोच, हिचकिचाहट!
काश, दुविधाओं के ये, बादल न होते!
इन्हीं स्मृति के दायरों में, हम तुम्हें रोक लेते,
यूँ न, धुँध में, तुम कहीं खोते!

किस मोड़, जाने मुड़ गईं राहें!
विवश, न जाने, किस ओर, हम चले!
दरमियाँ, वक्त के निशान, फासले कम न थे,
उस धुँध में, कहाँ, तुझे ढूंढ़ते!

तुम तक, ये शायद, पहुँच जाएँ!
शब्द में पिरोई, झिझकती संवेदनाएँ,
कह जाएँ वो, जो न कह सके कहते-कहते!
रोक लें तुझे, यूँ चलते-चलते!

ओ मेरी, स्मृति के सुमधुर क्षण!
बे-झिझक खनक, सुरीली याद संग,
स्मृतियों के, इन दायरों में, आ रोक ले उन्हें,
यूँ न खो जाने दे, धुँध में उन्हें!

झिझक, संकोच, हिचकिचाहट!
काश, झिझक के, दुरूह पल न होते,
उन्हीं स्मृति के दायरों में, हम तुम्हें रोक लेते,
यूँ न, धुँध में, तुम कहीं खोते!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

8 comments:

  1. झिझक, संकोच, हिचकिचाहट!
    काश, झिझक के, दुरूह पल न होते,
    उन्हीं स्मृति के दायरों में, हम तुम्हें रोक लेते,
    यूँ न, धुँध में, तुम कहीं खोते...बहुत उम्दा

    ReplyDelete
  2. वाह! बहुत सुंदर 👌
    लाजवाब अभिव्यक्ति।
    सादर प्रणाम आदरणीय सर 🙏

    ReplyDelete
  3. स्मृतियों में बसे वो पल , जो झिझक के कारण मात्र स्मृति में ही रह गए ..... सुन्दर भावाभिव्यक्ति .

    ReplyDelete
  4. किस मोड़, जाने मुड़ गईं राहें!
    विवश, न जाने, किस ओर, हम चले!
    दरमियाँ, वक्त के निशान, फासले कम न थे,
    उस धुँध में, कहाँ, तुझे ढूंढ़ते!सुंदर एहसासों का सृजन ।

    ReplyDelete