झिझक, संकोच, हिचकिचाहट!
काश, दुविधाओं के ये, बादल न होते!
इन्हीं स्मृति के दायरों में, हम तुम्हें रोक लेते,
यूँ न, धुँध में, तुम कहीं खोते!
किस मोड़, जाने मुड़ गईं राहें!
विवश, न जाने, किस ओर, हम चले!
दरमियाँ, वक्त के निशान, फासले कम न थे,
उस धुँध में, कहाँ, तुझे ढूंढ़ते!
तुम तक, ये शायद, पहुँच जाएँ!
शब्द में पिरोई, झिझकती संवेदनाएँ,
कह जाएँ वो, जो न कह सके कहते-कहते!
रोक लें तुझे, यूँ चलते-चलते!
ओ मेरी, स्मृति के सुमधुर क्षण!
बे-झिझक खनक, सुरीली याद संग,
स्मृतियों के, इन दायरों में, आ रोक ले उन्हें,
यूँ न खो जाने दे, धुँध में उन्हें!
झिझक, संकोच, हिचकिचाहट!
काश, झिझक के, दुरूह पल न होते,
उन्हीं स्मृति के दायरों में, हम तुम्हें रोक लेते,
यूँ न, धुँध में, तुम कहीं खोते!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
झिझक, संकोच, हिचकिचाहट!
ReplyDeleteकाश, झिझक के, दुरूह पल न होते,
उन्हीं स्मृति के दायरों में, हम तुम्हें रोक लेते,
यूँ न, धुँध में, तुम कहीं खोते...बहुत उम्दा
विनम्र आभार
Deleteवाह! बहुत सुंदर 👌
ReplyDeleteलाजवाब अभिव्यक्ति।
सादर प्रणाम आदरणीय सर 🙏
विनम्र आभार
Deleteस्मृतियों में बसे वो पल , जो झिझक के कारण मात्र स्मृति में ही रह गए ..... सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteकिस मोड़, जाने मुड़ गईं राहें!
ReplyDeleteविवश, न जाने, किस ओर, हम चले!
दरमियाँ, वक्त के निशान, फासले कम न थे,
उस धुँध में, कहाँ, तुझे ढूंढ़ते!सुंदर एहसासों का सृजन ।
विनम्र आभार
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