Sunday, 8 September 2024

सब फीका लागे

तू लागे ऐसी, तुम बिन सब फीका लागे!

सिमटे सब रंग, लागे इक ही अंग,
ज्यूं, रिमझिम सा मौसम,
घोल रहा हो कोई भंग,
सावन सा आंगन,
मन मदमाया सा लागे!

तू लागे ऐसी, तुम बिन सब फीका लागे!

तुम बिन, जागे पतझड़ सा बेरंग,
ज्यूं, वृक्षों पर इक मातम,
पात-पात विरहा के रंग,
छाँव कहां, मन,
कंटक पांव तले लागे!

तू लागे ऐसी, तुम बिन सब फीका लागे!

ले आए तू, त्योहार भरा इक रंग,
रुत कोई बसंत-बयार सा,
रव जैसे नव-विहार सा,
पाए चैन कहां,
मन, झाल-मृदंग बाजे!

तू लागे ऐसी, तुम बिन सब फीका लागे!

तू कोई कूक सी, इक मूक सा मैं,
तू रूपसी और ठगा सा मैं,
ज्यूं, ले नभ की आभा,
निखरे प्रतिमा,
इक भोर सुहानी जागे!

तू लागे ऐसी, तुम बिन सब फीका लागे!

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