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Tuesday, 26 January 2021

मन कह न पाए अलविदा

जीवन के क्षणों में,
जीवन, बस रहा, कहीं उन निर्जनों में!

कभी हो जाए, कोई विदा,
फिर भी, मन कह न पाए, अलविदा!
शायद, यही इक सुख-सार,
है यही, संसार,
धागे जोड़ ले मन, 
दुरूह, विदाई के क्षणों में ....

भटके ये मन, बंधे, कहीं उन निर्जनों में!

मन से परे, मन के अवयव,
मन सुने, उस अनसुने, गीतों की रव!
कंप-कंपाते, मन की पुकार,
मन की, गुहार,
दूर, कैसे रहे मन,
कंपित, जुदाई के क्षणों में .....

भटके ये मन, बंधे, कहीं उन निर्जनों में!

ढ़ूँढ़े वहाँ मन अपना साया,
विकल्प सारे, वो, जहाँ छोड़ आया!
क्षीण कैसे, हो जाए मल्हार,
नैनों के, फुहार,
कैसे संभले ये मन,
निष्ठुर, रिहाई के क्षणों में .....

जीवन के क्षणों में,
जीवन, बस रहा, कहीं उन निर्जनों में!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)