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Monday, 12 August 2019

दोबारा

आनेवाला कल हमारा, फिर पुकारेगा दोबारा!

खुले हैं पट, इतिहास के खुले हैं लट,
काश्मीर की इक भूल से, घरों के धुले हैं चौखट,
बाँट दे जो मन, अब हो न कोई ऐसी धारा,
इतिहास वो ही फिर, ना बने दोबारा!

आनेवाला कल हमारा, फिर पुकारेगा दोबारा!

तीन सौ सत्तर, टुकड़े कर के दिलों के,
खुफिया पते दुश्मनों को, देकर गए थे किलों के,
छुपे थे घरों में भेदिये, उल्टी बही थी धारा,
भूल वो ही फिर, अब ना हो दोबारा!

आनेवाला कल हमारा, फिर पुकारेगा दोबारा!

वो ही भेदिए, अब जयचंद बन चुके,
इन्सान की शक्ल में, वो ही भेड़िये हैं बन चुके,
उनकी ही सियासत, का खेल है ये सारा,
कामयाब वो ही, फिर न हो दोबारा!

आनेवाला कल हमारा, फिर पुकारेगा दोबारा!

जो आग है दिलों में, सम्हालो उन्हें,
पहचानो दुश्मनों को, कर दो खाक तुम उन्हें,
अमन, चैन की, बह चलेगी ऐसी धारा,
जम्हूरियत पर, गर्व होगा दोबारा!

आनेवाला कल हमारा, फिर पुकारेगा दोबारा!

इतिहास हम बनेंगे, गर्व सब करेंगे,
पीढियाँ दर पीढियाँ, हम पर नाज कर सकेंगे,
काश्मीर ही जनन्त, बनेगा फिर ये सारा,
कश्मीरियत, जी उठेगा दोबारा!

आनेवाला कल हमारा, फिर पुकारेगा दोबारा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Monday, 25 February 2019

संघर्षरत इतिहास

क्या आज भी,
रच रहे
हम
कोई संघर्षरत इतिहास...

बीता हास,
बना है उपहास,
है विश्वास,
रचेंगे हम नया इतिहास!

विषैले तीर
कुछ,
हैं चुभे इतिहास में,
दंश
सहते रहे,
रक्त
बहते रहे,
देश की हास में,
रक्त-रंजित
है मातृभूमि,
शांति की
आस में,
रक्ताभ आभा,
आ रही इतिहास से....

रक्त के
फव्वारे,
यत्र-तत्र फूटते रहे,
चुभते
अनगिनत तीर , 
शरीर पर
लिए
हम फिरते रहे,
हुई
मानवता,
लथपथ
निरीहों के खून से,
विवशता ,
झलक रही इतिहास से....

बीता हास,
कर रहा परिहास,
सशंकित है
फिर भविष्य का इतिहास!

क्या आज भी,
रच रहे
हम
कोई संघर्षरत इतिहास...

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा