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Monday, 25 February 2019

संघर्षरत इतिहास

क्या आज भी,
रच रहे
हम
कोई संघर्षरत इतिहास...

बीता हास,
बना है उपहास,
है विश्वास,
रचेंगे हम नया इतिहास!

विषैले तीर
कुछ,
हैं चुभे इतिहास में,
दंश
सहते रहे,
रक्त
बहते रहे,
देश की हास में,
रक्त-रंजित
है मातृभूमि,
शांति की
आस में,
रक्ताभ आभा,
आ रही इतिहास से....

रक्त के
फव्वारे,
यत्र-तत्र फूटते रहे,
चुभते
अनगिनत तीर , 
शरीर पर
लिए
हम फिरते रहे,
हुई
मानवता,
लथपथ
निरीहों के खून से,
विवशता ,
झलक रही इतिहास से....

बीता हास,
कर रहा परिहास,
सशंकित है
फिर भविष्य का इतिहास!

क्या आज भी,
रच रहे
हम
कोई संघर्षरत इतिहास...

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा