बीता हास,
बना है उपहास,
है विश्वास,
रचेंगे हम नया इतिहास!
विषैले तीर
कुछ,
हैं चुभे इतिहास में,
दंश
सहते रहे,
रक्त
बहते रहे,
देश की हास में,
रक्त-रंजित
है मातृभूमि,
शांति की
आस में,
रक्ताभ आभा,
आ रही इतिहास से....
रक्त के
फव्वारे,
यत्र-तत्र फूटते रहे,
चुभते
अनगिनत तीर ,
शरीर पर
लिए
हम फिरते रहे,
हुई
मानवता,
लथपथ
निरीहों के खून से,
विवशता ,
झलक रही इतिहास से....
बीता हास,
कर रहा परिहास,
सशंकित है
फिर भविष्य का इतिहास!
क्या आज भी,
रच रहे
हम
कोई संघर्षरत इतिहास...
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
रच रहे
हम
कोई संघर्षरत इतिहास...
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-02-2019) को "अपने घर में सम्भल कर रहिए" (चर्चा अंक-3259) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया आभार आदरणीय ।
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