तुम न आए....
बदला न ये मौसम, ना मेरे ये साये!
जो तुम न आए!
इस बार, खिल सका न गुलाब!
न आई, कलियों के चटकने की आवाज,
न बजे, कोपलों के थिरकते साज,
न चली, बसंती सी पवन,
कर गए, जाने पतझड़ कब गमन,
वो काँटे भी मुरझाए!
जो तुम न आए!
रह गई, छुपती-छुपाती चाँदनी!
न आई, शीतल सी, वो दुग्ध मंद रौशनी,
छुप चली, कहीं, तारों की बारात,
चुप-चुप सी, रही ये रात,
सोने चले, फिर वो, निशाचर सारे,
खोए रातों के साए!
जो तुम न आए!
चुप-चुप सी, ये क्षितिज जागी!
न जागा सवेरा, ना जागा ये मन बैरागी,
न रिसे, उन रंध्रों से कोई किरण,
ना हुए, कंपित कोई क्षण,
कुछ यूँ गुजरे, ये दिवस के चरण,
उन दियों को जलाए!
जो तुम न आए!
खुल न सके, मौसम के हिजाब!
न आई, कोयलों के कुहुकने की आवाज,
न बजे, पंछियों के चहकते साज,
न सजे, बागों में वो झूले,
खोए से सावन, वो बरसना ही भूले,
सब मन को तरसाए!
बदला न ये मौसम, ना मेरे ये साये!
जो तुम न आए!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)