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Monday, 11 April 2016

मूक प्राण

मूक प्राणों के निर्णय क्या ऐसे तय होते हैं जीवन में?

गुमसुम सी सजनी वो हाथों में मेंहदी रचकर,
इक सशंक जिज्ञासा पलती मन के भीतर,
अपरिचित सी आहट हर पल मन के द्वारे पर,
क्या वो हल्दी निखरेगी सजनी के तन पर?

द्वार हृदय के बरबस खोल रखें हैं उस सजनी नें,
कठिन परीक्षा देनी है उसे इक अनजाने को,
अपनेपन की परिभाषा इक नई लिखनी है उसको,
क्या वो अपरिचित अपनाएगा उस भाषा को?

मुक्ति भाव खोए से है सजनी की जड़ आँखों में,
भविष्य धुमिल है उसकी घनघोर कुहासों में,
पाँव थमें है स्तंभ शेष से, असमंजस है उसके मन में,
क्या मूक प्राणों के निर्णय ऐसे होते हैं जीवन में?

Saturday, 30 January 2016

होली

आयो होली रंग अति सुभावन, 
रंग डालूँ जीवन प्रीतम के संग,
राग विहाग गाऊँ चित्त-भावन।

विविध रंग मोहक मनभावन,
डारुँ मुख पे शोभे अतिरंजन,
नयन अभिराम अतिसुहावन।

रत-चुनरी रंग डारूँ सजनी के,
डारूँ रंग मनभावन जीवन के,
मुखमंडल मुखरित सजनी के।

चाहुँ नित फागुन अति-रंजित,
सजनी संग जीवन रंग-रंजित,
धानी चुनर हृदय अभिरंजित।