Thursday, 28 April 2016

खालीपन अब संग

मैं और मेरा खालीपन, अब दोनो ही रहते हैं संग!

कभी-कभी अजीब सा खालीपन,
गहराता मन के अन्दर,
जैसे सायों सा लहराता है,
अंधियारा स्याह रातों के भीतर।

उथला सा ये मन कब तक सह पाए,
कौन भरे मन का खालीपन,
मन बोलता है मन से,
आँखें मीचे मन बस सुनता ही जाए।

मन का खालीपन एहसासों का भूखा,
कोई तो जग में होता,
जो मन के एहसासों को सुनता,
ये खालीपन खुद मे ही खुद को ढूंढ़ता।

मैं और मेरा खालीपन अब दोनो हैं संग,
कभी-कभी मिल बैठते हम निर्जन में,
ठिठकता तब मेरा एकाकीपन,
फिर लगा लेता तब वो मुझको अपने अंग।

मैं और मेरा खालीपन, अब दोनो ही रहते हैं संग!

No comments:

Post a Comment