Monday, 18 April 2016

अब कोई इन्तजार नहीं

अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर......

बँधी थी उम्मीद की हल्की सी इक डोर,
कुछ छाँव सी महसूस होती थी गहराती धूप में भी,
मंद-मंद बयार चल जाती थी यादों की हर पल,
कानों मे अब गुंजता है सन्नाटा चीरता इक शोर....,

अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर......

हजार सपनों संग बंधी थी जीवन की डोर,
तन्हाई मादक सी लगती थी उन यादों की महफिल में,
धड़क जाता था दिल इक हल्की सी आहट में,
जेहन में अब घूमता है विराना सा अंतहीन छोर.....

अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर......

सँवरता था कभी वक्त, मदभरी बातों के संग,
सिलसिले थे शामों के तब, उन खिलखिलाहटों के संग,
मिश्री सी तरंग तैरती थी गुमशुदा हवाओं में तब,
कहीं गुमशुम वो आवाज, क्युँ है अब खामोश दौर....

अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर......

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