Saturday, 30 April 2016

किस गगन की ओर

ये खुला आसमाँ, पुकारता है अब किस गगन की ओर?
उड़ने लगे हैं जज्बातों के गुब्बारे आसमान में,
पंख पसारे उमरते अरमानों के रथ पर,
ये एहसास कैसे उठ रहे हैं अब इस ओर..............!

मन कब रुका है, उड़ चला ये अब उस गगन की ओर!
रुकने लगे हैं जज्बात ये मन के ये किस गाँव मे,
वो गाँव है क्या, उस नीले गगन की छाँव में,
छाँव वो ही ढूंढ़ता, मन ये मेरा उस ओर.......!

रोक लूँ मैं जज्बात को, क्युँ चला ये उस गगन की ओर,!
कोई थाम ले उन गुब्बारों को उड़ रहा है जो बेखबर,
क्युँ थिरकता बादलों में, लग न जाए उसको नजर,
वो उड़ रहा बेखबर, अब किस गगन की ओर.....!

धड़कनें बेताब कैसी, कह रहा चल उस गगन की ओर!

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