आच्छादित तुम हृदय पर होते, गर लगन तुझ में भी होती !
मन की इस मंदिर में मूरत उनकी ही,
आराधना के उस प्रथम पल से,
मूरत मेरी ही उनके मन में भी होती,
तो पूजा पूर्ण हो जाती मेरी।
स्थापित तुम ही मंदिर में होते, गर लगन तुझ में भी होती !
नाम लबों पर एक बस उनका ही,
समर्पण के उस प्रथम पल से,
लबों पर उनके भी नाम मेरा ही होता,
तो पूजा पूर्ण हो जाती मेरी।
प्लावित तुम ही लब पर होते, गर लगन तुझ में भी होती !
हृदय के धड़कन समर्पित उनको ही,
चाहत के उस प्रथम पल से,
समर्पित उनका हृदय भी पूरा हो जाता,
तो पूजा पूर्ण हो जाती मेरी।
उन्मादित धड़कन ये तुम करते, गर लगन तुझ में भी होती !
आराधना के फूल अर्पित उनको ही,
पूजन के उस प्रथम पल से,
अर्पित कुछ फूल मुझको भी कर देते,
तो पूजा पूर्ण हो जाती मेरी।
आह्लादित जीवन के पल होते, गर लगन तुझ में भी होती !
मन की इस मंदिर में मूरत उनकी ही,
आराधना के उस प्रथम पल से,
मूरत मेरी ही उनके मन में भी होती,
तो पूजा पूर्ण हो जाती मेरी।
स्थापित तुम ही मंदिर में होते, गर लगन तुझ में भी होती !
नाम लबों पर एक बस उनका ही,
समर्पण के उस प्रथम पल से,
लबों पर उनके भी नाम मेरा ही होता,
तो पूजा पूर्ण हो जाती मेरी।
प्लावित तुम ही लब पर होते, गर लगन तुझ में भी होती !
हृदय के धड़कन समर्पित उनको ही,
चाहत के उस प्रथम पल से,
समर्पित उनका हृदय भी पूरा हो जाता,
तो पूजा पूर्ण हो जाती मेरी।
उन्मादित धड़कन ये तुम करते, गर लगन तुझ में भी होती !
आराधना के फूल अर्पित उनको ही,
पूजन के उस प्रथम पल से,
अर्पित कुछ फूल मुझको भी कर देते,
तो पूजा पूर्ण हो जाती मेरी।
आह्लादित जीवन के पल होते, गर लगन तुझ में भी होती !
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