सारे हैं बंजारे, देखे जो ख्वाब तुम्हारे!
सोचा था, रख लूँगा, मन के घेरों में,
संजो लूँगा, कुछ तस्वीरें, ख्वाबों के डेरों में,
पर, खुश्बू थे वो सारे,
निकले, बंजारे,
बहते, नदियों के धारे,
पवन झकोरे,
पल भर, वो कब ठहरे,
निर्झर नैनों में, ख्वाब सुनहरे!
सारे हैं बंजारे, देखे जो ख्वाब तुम्हारे!
बेचारा मन, भटके बेगानों के पीछे,
दौरे है बेसुध,आँखें मींचे, बंजारों के पीछे,
पर, ठहरे हैं कब बंजारे,
वो राहों के मारे,
बातों में, ढ़ल जाते सारे,
धुंथलाते तारे,
भोर प्रहर, वो कब ठहरे,
दीवाने नैनों में, ख्वाब सुनहरे!
सारे हैं बंजारे, देखे जो ख्वाब तुम्हारे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत अच्छा। बाकी बंजारा है वक्त भटकता रहता है गांव गांव में कभी आंधियों के तो कभी बारिशों ..!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 08 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteवाह!बेहतरीन सर मन बंजारा।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteवाह ! ख्वाबों को बंजारों की उपमा ! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
DeleteBahut Sundat
ReplyDeleteThx
DeleteKhawabo s itefaaq ho wo banjare
ReplyDeleteMany a thx
Deleteवाह !बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय। धनतेरस व दीपावली की शुभकामनाएं। ।।।।
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