Wednesday, 9 December 2020

शिकवा

शिकवा ही सही, कुछ तो कह जाते!
तुम जो गए, बिन कुछ कहे,
खल गई, बात कुछ!

करते गर, तुम शिकायत,
निकाल लेते, मन की भड़ास सारी!
जान पाता, मैं वजह,
पर, बेवजह, 
इक धुँध में खो गए, बिन कुछ कहे,
खल गई, बात कुछ!

डिग चला, विश्वास थोड़ा,
अपनाया जिसे, क्यूँ, उसी ने छोड़ा!
उजाड़ कर, इक बसेरा,
ढूंढ़ते, सवेरा,
इक राह में खो गए, बिन कुछ कहे,
खल गई, बात कुछ!

बेहतर था, मिटा लेते शिकायतें सारी,
सुनी तुमने नहीं, मिन्नतें मेरी,
खल गई, बात कुछ!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
    (सर्वाधिकार सुरक्षित)

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 10 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. शिकवा ही सही, कुछ तो कह जाते!
    तुम जो गए, बिन कुछ कहे,
    खल गई, बात कुछ!
    ...सुंदर अभिव्यक्ति..।

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