शिकवा ही सही, कुछ तो कह जाते!
तुम जो गए, बिन कुछ कहे,
खल गई, बात कुछ!
करते गर, तुम शिकायत,
निकाल लेते, मन की भड़ास सारी!
जान पाता, मैं वजह,
पर, बेवजह,
इक धुँध में खो गए, बिन कुछ कहे,
खल गई, बात कुछ!
डिग चला, विश्वास थोड़ा,
अपनाया जिसे, क्यूँ, उसी ने छोड़ा!
उजाड़ कर, इक बसेरा,
ढूंढ़ते, सवेरा,
इक राह में खो गए, बिन कुछ कहे,
खल गई, बात कुछ!
बेहतर था, मिटा लेते शिकायतें सारी,
सुनी तुमने नहीं, मिन्नतें मेरी,
खल गई, बात कुछ!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 10 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteशिकवा ही सही, कुछ तो कह जाते!
ReplyDeleteतुम जो गए, बिन कुछ कहे,
खल गई, बात कुछ!
...सुंदर अभिव्यक्ति..।
आभारी हूँ आदरणीया
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteआभार आदरणीया
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