यह मानव, जीवट बड़ा!
गिरता, हर-बार होता, उठ खड़ा,
जख्म, कितना भी हो हरा!
विघ्न, बाधाओं से, वो ना डरा,
समय से लड़ा, मानव,
जीवट बड़ा!
या विरुद्ध, बहे ये धारा!
हो, पवन विरुद्ध, दूर हो किनारा,
ना अनुकूल, कोई ईशारा!
प्रतिकूल, तूफानों से, वो लड़ा,
डरा कभी ना, मानव,
जीवट बड़ा!
आईं-गईं, प्रलय कितनी!
घिस-घिस, पाषाण, हुई चिकनी,
इक संकल्प, हुई दृढ़ उतनी,
कई युग देखे, बनकर युगद्रष्टा,
श्रृष्टि से लड़ा, मानव,
जीवट बड़ा!
युगों-युगों से, रहा खड़ा!
वो पीर, पर्वत सा, बन कर अड़ा,
चीर कर, धरती का सीना,
सीखा है उसने, जीवन जीना,
हारा है कब, मानव,
जीवट बड़ा!
जंग अभी, है यह जारी!
विपदाओं पर, है यह मानव भारी,
इक नए कूच की, है तैयारी,
अब, ब्रम्हांड विजय की है बारी,
ठहरा है कब, मानव,
जीवट बड़ा!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
ये जीवटता ही तो सृष्टि का आधार है । अति सुन्दर ।
ReplyDeleteआभार आदरणीया अमृता जी
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 08 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार दी
Deleteवाह!बेहतरीन !पुरुषोत्तम जी ।
ReplyDeleteआभार आदरणीया शुभा जी
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया आभार आदरणीया भारती जी
Deleteजंग अभी, है यह जारी!
ReplyDeleteविपदाओं पर, है यह मानव भारी,
इक नए कूच की, है तैयारी....
चरैवेति चरैवेति की भावना युक्त सुंदर रचना 🌹🙏🌹
प्रेरक प्रशंसा हेतु आभारी हूँ आदरणीया शरद जी
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