Sunday, 13 December 2020

देश को न बाँटिए

अधिकार-पूर्वक, मांगिए,
मतलब साधिए,
भले ही,
पर, देश को न बाँटिए!

जयचंद न बनिए,
राह, जिन्ना की न चलिए,
देखे हैं हमनें, पराधीनता की पराकाष्ठा,
फिर, डिग न जाए, ये आस्था,
देश ये, बँट न जाए,
अपने हाथों, हाथ अपना, 
कट न जाए,
एक जिन्ना, राष्ट्र को ही, बाँट बैठा,
हाथ, खुद ही अपना, काट बैठा,
बचे हैं, कुछ रक्तबीज,
रोज ही, बोते हैं जो,
विभाजन के, रक्तिम विषैले-बीज!
पर, अब न होने देंगे, हम,
और विभाजन!
आप, सियासतें कीजिए,
रियायतें लीजिए,
भले ही,
पर, देश को न बाँटिए!

स्वार्थ-वश, होकर विवश,
कुछ भी बांचिए,
भले ही,
पर, देश को न बाँटिए!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

20 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 14 दिसंबर 2020 को 'जल का स्रोत अपार कहाँ है' (चर्चा अंक 3915) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. देशहित सर्वोपरी पर सर्वोपरी किसान.
    सुंदर कविता

    न्यू पोस्ट- समानता

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  3. अत्यंत प्रभावी व मुखर लेखन ।

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  4. सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति..।

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  5. स्वार्थ-वश, होकर विवश,
    कुछ भी बांचिए,
    भले ही,
    पर, देश को न बाँटिए!
    बहुतबढिया।

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    1. आदरणीया ज्योति जी, ब्लॉग पर आपके पुनःआगमण हेतु आभारी हूँ । बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  6. गहन! देश हिताय देश विरोधी आंदोलन पर एक चिंतन , प्रशंसनीय,
    बहुत सुंदर सार्थक सृजन।

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    1. आभारी हूँ आदरणीया। आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए महत्वपूर्ण है। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  7. जयचंद न बनिए,
    राह, जिन्ना की न चलिए,
    देखे हैं हमनें, पराधीनता की पराकाष्ठा,
    फिर, डिग न जाए, ये आस्था,
    देश ये, बँट न जाए,
    अपने हाथों, हाथ अपना,
    कट न जाए,

    देश को आपके जैसे कर्णधार की ही आवश्यकता है।
    निरंतर रहे।
    शुभकामनाएँ।
    सादर।

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