और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!
सब तो, छूट चुका है पीछे,
फिर भागे मन, किन सपनों के पीछे,
वो, जो है रातों के साए,
कब हाथों में आए,
जाने, कहाँ-कहाँ, भटकाएगी,
अधूरी मन की चाह!
और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!
जाने कब, भूल चुके सब,
मन के स्नेहिल बंधन, तोड़ चले कब,
बिसराए, नेह भरे गंध,
वो गेह भरे सुगंध,
तन्हा पल में, याद दिलाएगी,
बन कर इक आह!
और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!
अब तक, लब्ध रहा क्या!
क्या प्रासंगिक थी, सारी उपलब्धियाँ!
गिनता हूँ अब तारों को,
मलता हूँ हाथों को,
झूठी चाहत, क्या करवाएगी?
बस, भटकाएगी राह!
और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!
प्रसंग कई, जब छूट चले,
जाना, जब खुद अप्रासंगिक हो चले,
तर्क, भला क्या देना!
राहों में, क्या रोना!
इस प्रश्नकाल में, जग जाएगी!
इक तृष्णा इक चाह!
और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति।
ReplyDeleteनई पोस्ट : https://www.iwillrocknow.com/2020/12/blog-post_20.html?m=1
शुक्रिया आभार आदरणीय नीतीश जी।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 21 दिसंबर 2020 को 'जवान तैनात हैं देश की सरहदों पर' (चर्चा अंक- 3922) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आभार आदरणीय
Deleteअब तक, लब्ध रहा क्या!
ReplyDeleteक्या प्रासंगिक थी, सारी उपलब्धियाँ!
गिनता हूँ अब तारों को,
मलता हूँ हाथों को,
झूठी चाहत, क्या करवाएगी?
बस, भटकाएगी राह!
और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!अन्तर्मन तक छूती सुन्दर रचना..!
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया जिज्ञासा जी
Deleteवो गेह भरे सुगंध तन्हा पल में याद दिलाएगी, बहुत अच्छा लगा, सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया भारती जी
Deleteवाह वाह बहुत सुंदर,बेहद उम्दा 👌
ReplyDeleteसादर प्रणाम 🙏
बहुत-बहुत धन्यवाद आँचल जी।
Deleteफिर भी अहम का विसर्जन कहां हो पाता है भले ही हाथ कुछ भी नहीं आता है । अति सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अमृता तन्मय जी।
Deleteबहुत बहुत भाव पूर्ण सुन्दर रचना
Deleteहार्दिक आभार आदरणीय आलोक जी। सुस्वागतम्। ।।।। स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर।
Deleteप्रसंग कई, जब छूट चले,
ReplyDeleteजाना, जब खुद अप्रासंगिक हो चले,
तर्क, भला क्या देना!
राहों में, क्या रोना!
इस प्रश्नकाल में, जग जाएगी!
इक तृष्णा इक चाह!...
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...
हार्दिक आभार आदरणीया शरद जी।।
Deleteजाने कब, भूल चुके सब,
ReplyDeleteमन के स्नेहिल बंधन, तोड़ चले कब,
बिसराए, नेह भरे गंध,
वो गेह भरे सुगंध,
तन्हा पल में, याद दिलाएगी,
बन कर इक आह!
और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!.... वाह उम्दा रचना
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteअद्भुत है आपकी रचना, अद्भुत है आपकी सोच वाह क्या बात है
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
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