गुजारे थे कल, पहाड़ों पे कुछ पल....
विशाल हृदय, वो स्नेह भरा दामन,
इक सम्मोहन, वो अपनापन,
विस्मित करते, वो आकर्षण के पल,
बसे, नज़रो में हैं, हर-पल!
गुजारे थे कल, पहाड़ों पे कुछ पल....
रोक रही राहें, खुली पर्वत सी बाँहें,
इक परदेशी, लौट कैसे जाए,
यूँ बांध गए थे, पाँवों में बेरी वो पल,
था तिलिस्म कोई, उस पल!
गुजारे थे कल, पहाड़ों पे कुछ पल....
संदेश कोई, ले आई थी मंद पवन,
मैं, एकाग्र-चित्त, ध्यान मग्न,
सांध्य किरण, लाई थी इक सिहरन,
ठहरे वो पल, थे बड़े चंचल!
गुजारे थे कल, पहाड़ों पे कुछ पल....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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"पहाड़" हमेशा से ही हमारी अनुभूतियों को सजग करने में सक्षम रहे हैं, जब भी इनकी ऊच्च शिखरों को देखता हूँ तो अनायास ही उस ओर खींचा चला जाता हूँ और लगता है जैसे "खुद को छोड़ आया हूँ उन पहाड़ों में ...." - पहाड़ों में