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Friday 8 January 2016

पल वापस मिल गए


वो एक पल!
हर पल वो लम्हा,
आँसुओं में भीगे वो पल,
तुमने जब छोड़ा था दामन,
लम्हे रीत गए सदियों बीत गए,
वो एक पल कभी बीता ही नहीं।

उस पल की उदासी,
आँखों की भीगी पलकें,
लबों पे लरजते अल्फाज,
मन के अंदर तुफानों के भँवर,
वो एक पल कभी बीता ही नहीं।

पर ये क्या इस पल?
इक चेहरे में दिखता तेरा नूर,
आँखों मे दिखती फिर वही प्यास,
बातों मे उसकी मिलती वही मिठास,
हाँ, वो एक पल वापस मिल गए हैं मुझे।

Thursday 7 January 2016

कौन तुम

अधरों पे अधखुली सी मुस्कान,
अपलक देखती हो तुम अंजान,
नयन तरकश छोड़ते कई वाण,
कौन तुम, बस गई जो हिय आन।

हिरण सदृश चपल चंचल नयन,
आभा मुख उसके अति-सुहावन,
विस्मित करते तेरे मधुर मुस्कान,
कौन तुम, रम गई जो मन प्राण।

तू महज सपना या साकार तुम,
तुम अनन्त हो या आकार  तुम,
या किसी कवि की कल्पना तुम,
कौन तुम, बिन तेरे आकुल प्राण।

Wednesday 6 January 2016

संचित प्रीत का आँचल

प्रीत तुझसे ही प्यास तुझसे ही!

संचित प्रीत का आँचल बन,
फैल जाओ तुम हृदय पर,
बेसुध धड़कनों को,
थोड़ा सहारा मिल जाए,
हृदय के अन्तस्थ की प्यास,
जरा सी तो बुझ जाए!

स्वर तुझसे ही एहसास तुझसे ही!

संगीत हृदय वीणा का बन,
मधुर तान तुम छेड़ो मन पर,
बेसुरे एहसासों को,
तार स्वर का मिल जाए,
जर्जर वीणा के सुर की प्यास,
थोड़ी सी तो बुझ जाए!

संचित प्रीत का आँचल तुझसे ही!

दिल ढूंढता अक्सर

चुपके से जो कह दी थी जो तूने,
कानों मे फिर बात वही मद्धिम सी,
अकंपित एहसास फिर लगे थे जगने,
आँखों मे जल उठी थी इक रौशनी,
सपने सजीव होकर लगे थे सजने।

दीप अगिनत जले थेे आशाओं के,
स्वर अनन्त उभरे थे मधुर वादों के,
बजते थे प्राणों में संगीत वीणा के 
झूमते थे वाद्य कितने अरमानों के,
मंजर कितने बदले थे एहसासों के।

स्वर वही ढ़ूंढता रहता दिल अक्सर,
फिरता वियावान वादियों मे निःस्वर,
राहों में दिखता नहीं कोई दूर-दूर तक,
रौशनी फिर वही ढ़ूढ़ती रहती हैं आँखे,
अंधेरों में नूर कोई जलता नही दूर तक।

Tuesday 5 January 2016

यादों के साए

रथ किरण संग याद तुम्हारी,
मन को विस्मृत कर जाती हर प्रात,
जाने क्या-क्या कहती रहती,
किन बातों में है उलझी रहती,
सपने नए कई बुन जाती,
तृष्णगी तन्हाई के तृप्त कर जाती,
फासले सदियों के लगने लगते कम,
सूखी पथराई आँखें भी हो जाती हैं नम।

जर्जर वीणा के तारों से खेलती,
विरानियों में दिल के शहर कर जाती,
शांत मन में निर्झर लहर सी इठलाती,
दिल में चंचल तीस्ता सी मदमाती,
सांझ धुमिल किरण देख फिर मुरझा जाती,
लौट जाती हो तुम ढ़लती चाँद संग,
कहती वापस आऊँगी रथकिरण संग,
छोड़ जाती हो फिर तन्हाई मे कर विह्वल मन।

चिर प्रेयसी, अनन्त-प्रणयिनी


तुम मेरी चिर प्रेयसी,
तुम मेरी अनन्त-प्रणयिनी।

काल सीमा से परे हमारा प्रणय,
चिर प्रेयसी तुम जन्म-जन्न्मातर से,
मेरी कल्पनाओं में बहती निर्बाध प्रवाह सी,
इस जीवन-वृत्त के पुनर्जन्म की स्मृति सी,
विस्तृत अन्तर्दृष्टि पर मोह आवरण जैसी।

तुम मेरी चिर प्रेयसी,
तुम मेरी अनन्त-प्रणयिनी।

तुम अप्राप्य निधि जीवन वृत्त की,
तुम अतृप्त तृष्णा जन्म-जन्मान्तर की,
लुप्त हो जाती है जो आँखों में आकर,
क्या अपूर्ण तृष्णा की तृप्ति कभी हो पाएगी?
क्या तृष्णा-तृप्ति में समाहित हो पाएँगी?

तुम मेरी चिर प्रेयसी,
तुम मेरी अनन्त-प्रणयिनी।

Monday 4 January 2016

दिल ढूंढता फिर

दिल की विरानियों मे फिर उठी सर्द हवाएँ,
वादियो की गहराई मे खामोशियों की हैं सदाएँ,
दिल ढूंढता फिर वही कहकशों के शहर,
दे जाओ तुम साथ वादियों मे कहीं दूर तक।

लम्हात जिनमे हैं तुझ संग बेफिक्री की रवानियां,
बसते हैं जिनमे असंख्य फूल तेरी यादों के
दिल के प्रस्तर पर उन्ही लम्हों को बिखेर दो,
दे जाओ तुम साथ जज्बातों में कहीं दूर तक।

वो हो तुम..... !

वो हो तुम..... !

आभामंडल मुखरित,
नयनों मे रतरजिनी,
होठों पर रज पंखुरी,
प्रकाश पुंज आँखों मे,
कंठ में गीत मधु कामिनी,
स्वर में वीणा का कंपन,
तेज सरस्वती सम्।

वो हो तुम..... !

आशाओं के स्वर,
जीवन ज्योत पुंज,
सप्तरागिणी प्रभात की,
तुम नवगति नवलय ताल,
जड़ जीवन के गीत तुम,
जड़ चेतन का प्राण,
स्पर्श मधुमास सम्।

वो हो तुम..... !

शब्दों को होठों का कंपन दे दो

मेरे शब्दों को तुम स्वर दे दो,
तुम इनको जीवन अंबर दे दो,
मुखरित तभी ये हो पाएंगे,
कंठ सभी के बस जाएंगे।
मेरे शब्दों को अपनी होठों का कंपन दे दो।

कहते है शब्दों से भाषा बनती,
पर मेरे शब्दों के परिश्रम व्यर्थ क्युँ जाते,
ये शब्द भाषा मे क्युँ नही ठल पाते,
तेरे स्वर मे है वीणापाणि बसती,
तुम इनको मुखरित स्वर दे दो,
मेरे शब्दों को अपनी होठों का आलिंगन दे दो।

Sunday 3 January 2016

शायद तू रहती होगी वहाँ

चाँद की ओट के पीछे,
सितारों की हद से भी दूर,
गम की सरहदों के पार,
ख्वाबों में कहीं इक दुनियाँ,
शायद तू रहती होगी वहाँ।

पर्वतों के सायों के पीछे,
मन की कल्पनाओं से भी दूर,
ख्यालों की सरहदों के पार,
हसीन सी कहीं है वादियाँ,
शायद तू रहती होगी वहाँ।

हसरतों की सदाओं के पीछे,
रंजो-गम की पहुँच से भी दूर,
अवसाद-विसाद की सरहदों के पार,
मुखरित होती सुंदर सी कलियाँ,
शायद तू रहती होगी वहाँ।

Saturday 2 January 2016

फासले सदियों के

सदियों के हैं अब फासले,
दिल और सुकून के दरमियाँ,
पीर-पर्वतों के हैं अब दायरे,
सागर और साहिल के दरमियाँ।

खामोंशियों को गर देता कोई सदाएँ,
दिल की गहराईयों मे कोई उतर जाए,
साहिल की अनमिट प्यास बुझा जाए,
दूरियाँ ना रहे अब इनके दरमियाँ।

सागर-लहरों को मिल जाता किनारा,
पर्वत झूम उठता देख दिलकश नजारा,
साहिलों के भी सूखे होठ भीग जाते,
फासले जो हैं दरमियाँ वो मिट जाते।

तन्हाईयों के सिलसिले

तन्हाईयों के सिलसिले घेरे हैं दूर तक हमे,
तृष्णगी की रवानगी मे भी आ रहें हैं अब मजे।

खलिश थी जिन हसीन फूलों भरी वादियों की हमे,
ख्यालों की तन्हाईयों में अब, फैली है दूर तक सामने।

हर मंजर है तन्हा पर इनमे भी है इक रवानगी,
जज्बातों में उथल-पुृथल पर लिए इक वानगी।

हर शख्स यूँ तो तन्हा है जीवन के इस मेले में,
चल दूर कही चल ऐ दिल मिलते है कही अकेले में।

खुमारियों में भी साथ देती हैं दिल की धड़कनें,
इन धड़कनों में तू भी कहीं दिखता नजर के सामने।

Friday 1 January 2016

तलाशती हैं आँखें...फिर!

तलाशती हैं आँखें...फिर !

प्यार के वही लम्हे,
फुर्सत के वही क्षण,
सुंदरता का वही मंजर,
बेचैन साँसों का थमके आना।

तलाशती हैं आँखें...फिर !

समय का रुक जाना,
यादों मे बस खो जाना,
बाहों में तेरी सो जाना,
लम्हातों का फिर थम जाना।

तलाशती हैं आँखें...फिर !

उनका छम से आना,
आँखों मे ख्वाब जगाना,
हसरतों को रंगीन बनाना,
दिल पर बादलों सा छा जाना।

तलाशती हैं आँखें...फिर !

एक बार जो कह दे तू!

एक बार जो कह दे तू!
आसमानों के मध्य आकर,
बादल वही पर ठहर जाएंगे।

एक बार जो कह दे तू!
विरानों के सीने मे जाकर,
कोलाहल से ये भर जाएंगे।

एक बार जो कह दे तू!
इन बागों के समीप जाकर,
फूल भी खिलना भूल जाएंगे।

एक बार जो कह दे तू!
ब्रम्हांड के कहकहों में आकर,
भूमण्डल वहीं पर ठहर जाएंगे।

तू कहता क्यूँ नही कुछ?
क्या तेरे कण्ठ अवरुद्ध है?
तू कह दे तो मनप्राण खिल जाएंगे।

Thursday 31 December 2015

सबसे प्यारा फूल

एक फूल है सबसे सुन्दर,
मन के बगिया में जो उपजा है
उस बगिया ने गुलाब भेजा है,
मन के अन्दर जो सदियों से सजा है,
हृदय मध्य ये सजे रहेंगे
प्राणों से सदा जुड़े रहेंगे,
प्रीत बिना ये मुरझा जाएंगे ।
प्रेमबगिया की मधुयादों को नववर्ष की ढेर सारी बधाई

यादों के फूल

फूल यादों के खिलते रहेंगे सदा,
यादों की बन जाएंगी लड़ियाँ,
कुछ सूखे कुछ हरे-भरे पत्तों से,
मानस पटल पर उभर अनमने से,
कुछ सुख-कुछ दुख की अनुभूतियाँ।

बीती-बातों की खुल जाएंगी परतें,
आँखों मे होगा हर गुजरा मंजर,
परत दर परत शायद वो गहराए,
कुछ याद आए, कुछ विसरा जाए,
कुछ आशा-कुछ निराशा के प्रस्तर।

जीवन की राहें गुजरती यादों संग,
कुछ यादें मीठी क्युँ न छोड़ जाए हम़,
जो प्रखेरे आशाओं के रश्मि किरण,
यादें ऐसी जो आँखों मे प्रीत भर दे,
कुछ आस जगाएं नयनों को कर जाए नम।

Wednesday 30 December 2015

फिर तेरी यादों के बादल छाए

फिर तेरी यादों के बादल छाए,
चाहत की रिमझिम बूंदें बरसाए,
अन्तर्मन भीग चुके हैं इनमें,
मयुरों के नृत्य मन को लुभाए।

यादें सारी सजीव हो चुकी हैं,
कोलाहल इनके उभर चुके हैं,
शोर मचाते ये अन्तर्मन मे,
कोयल की हूक मन को हर जाए।

आँखें सजल हो चुकी यादों में,
होठों पर इक चुप सी लगी हैं,
चेहरे पर छा गई अजीब शांति सी,
चातक के स्वर मनविभोर कर जाए।

फिर तेरी यादों के बादल छाए। 

तुम प्रीत गीत मीत

तुम प्रीत, तुम गीत, तुम मीत बन जाओ!

ऊर आलिंगन मे भर लो,
तुम नभ को मुझ संग छू लो,
हृदयाकाश पर लहरा जाओ,
तुम प्रीत बरसाओ, तुम प्रीत बरसाओ!

मन प्रांगण आ जाओ,
मन वीणा के तार छेड़ दो,
मधुर झंकार बन जाओ,
तुम हिय गीत बन जाओ, तुम हिय गीत बन जाओ!

यादों मे बस जाओ,
प्रखरता के आयाम दे जाओ,
जीवन-संध्या तक साथ निभाओ,
तुम संग मीत बन जाओ, तुम संग मीत बन जाओ।

हृदय के भाव

हृदय की भाषा गर तुम समझो,
प्रीत हमारी समझ जाओगी,
शब्दों मे कहाँ इतनी प्रखरता,
भाव जो ये तुम्हे समझा पाएगी।

हृदय में प्रबल भावना बसते हैं,
सागर कल्पना के ये रचते हैं,
प्राणों की आहूति ये लेते हैं,
नामुमकिन शब्दों मे ढ़ल पाएगी।

हृदय गर पाषाण हों तो,
भाव कहाँ तुम जान पाओगी,
प्रस्तर भावों मे बसता जीवन,
क्या तुम भी कभी समझ पाओगी?

जिनके लिए हृदय बस अंग है,
जीवन बस आवागमन है,
लाभ-हानि,धन-सम्मान निज उत्थान है,
हृदय-भाव वहाँ ये मर जाते हैं ।

तुम चंद पल जीवन दे जाते हो

तुम चंद पल जीवन दे जाते हो।

आहटों में रचकर,
धड़कनों मे बसकर,
गुंजी सदाओं मे छुपकर,
संगीत सुना जाते हो,

तुम चंद पल जीवन दे जाते हो।

रश्मि किरण मे ढ़लकर,
मंद हवाओं संग चलकर,
मेरी कल्पनाओं मे आकर,
रच बस जाते हो,

तुम चंद पल जीवन दे जाते हो।

नभ में बादल बनकर,
घनघोर घटाओं सी छाकर,
अमृत रस बरसाकर,
मन शीतल कर जाते हो,

तुम चंद पल जीवन दे जाते हो।