Thursday, 7 January 2016

कौन तुम

अधरों पे अधखुली सी मुस्कान,
अपलक देखती हो तुम अंजान,
नयन तरकश छोड़ते कई वाण,
कौन तुम, बस गई जो हिय आन।

हिरण सदृश चपल चंचल नयन,
आभा मुख उसके अति-सुहावन,
विस्मित करते तेरे मधुर मुस्कान,
कौन तुम, रम गई जो मन प्राण।

तू महज सपना या साकार तुम,
तुम अनन्त हो या आकार  तुम,
या किसी कवि की कल्पना तुम,
कौन तुम, बिन तेरे आकुल प्राण।

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