Saturday, 2 January 2016

फासले सदियों के

सदियों के हैं अब फासले,
दिल और सुकून के दरमियाँ,
पीर-पर्वतों के हैं अब दायरे,
सागर और साहिल के दरमियाँ।

खामोंशियों को गर देता कोई सदाएँ,
दिल की गहराईयों मे कोई उतर जाए,
साहिल की अनमिट प्यास बुझा जाए,
दूरियाँ ना रहे अब इनके दरमियाँ।

सागर-लहरों को मिल जाता किनारा,
पर्वत झूम उठता देख दिलकश नजारा,
साहिलों के भी सूखे होठ भीग जाते,
फासले जो हैं दरमियाँ वो मिट जाते।

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