Wednesday, 6 January 2016

संचित प्रीत का आँचल

प्रीत तुझसे ही प्यास तुझसे ही!

संचित प्रीत का आँचल बन,
फैल जाओ तुम हृदय पर,
बेसुध धड़कनों को,
थोड़ा सहारा मिल जाए,
हृदय के अन्तस्थ की प्यास,
जरा सी तो बुझ जाए!

स्वर तुझसे ही एहसास तुझसे ही!

संगीत हृदय वीणा का बन,
मधुर तान तुम छेड़ो मन पर,
बेसुरे एहसासों को,
तार स्वर का मिल जाए,
जर्जर वीणा के सुर की प्यास,
थोड़ी सी तो बुझ जाए!

संचित प्रीत का आँचल तुझसे ही!

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