पिघलते लम्हों का बेचैन कारवाँ,
गुजरता रहा वक्त की आगोश से,
अरमाँ लिए दिल में हम देखते रहे खामोश से।
लम्हें फासलों से गुजरते रहे,
दिलों के बेजुबाँ अरमाँ पिघलते रहे,
आरजू थी गुनगुनाती पिघलती शाम की,
पिघलती सी रास्तों पे बस शाम ढ़लते रहे ।
पिघलते लम्हों का बेवश कारवाँ,
बस गुजरता गया कोहरों की ओट से,
हसरतें दिल मे लिए हम देखते रहे खामोश से।
कोहरों की धूंध मे ये चलते रहे,
बेवश जज्बातों के निशाँ पिघलते रहे,
पिघलती रही शाम हसरतों के जाम की,
पिघलते नयनों से बस आँसू निकलते रहे ।
पिघलते लम्हों का तन्हा कारवाँ,
बस गुजरता गया वक्त की आगोश से,
हसरतें दिल मे लिए हम देखते रहे खामोश से।
गुजरता रहा वक्त की आगोश से,
अरमाँ लिए दिल में हम देखते रहे खामोश से।
लम्हें फासलों से गुजरते रहे,
दिलों के बेजुबाँ अरमाँ पिघलते रहे,
आरजू थी गुनगुनाती पिघलती शाम की,
पिघलती सी रास्तों पे बस शाम ढ़लते रहे ।
पिघलते लम्हों का बेवश कारवाँ,
बस गुजरता गया कोहरों की ओट से,
हसरतें दिल मे लिए हम देखते रहे खामोश से।
कोहरों की धूंध मे ये चलते रहे,
बेवश जज्बातों के निशाँ पिघलते रहे,
पिघलती रही शाम हसरतों के जाम की,
पिघलते नयनों से बस आँसू निकलते रहे ।
पिघलते लम्हों का तन्हा कारवाँ,
बस गुजरता गया वक्त की आगोश से,
हसरतें दिल मे लिए हम देखते रहे खामोश से।
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