निर्दयी बड़ी, सर्द सी ये पवन?
निर्मम, जाने न मर्म!
ढ़ँक लूँ, भला कैसे ये घायल सा तन!
ओढूं भला कैसे, कोई आवरण!
दिए बिन, निराकरण!
टटोले बिना, टूटा सा अंतः करण,
ले आए हो, ठिठुरण!
निर्मम, जाने न मर्म......
हो चले थे सर्द, पहले ही एहसास सारे!
चुभोती न थी, काँटों सी चुभन!
दुश्वार कितने, हैं क्षण!
जाने बिना, पल के सारे विकर्षण,
ले आए हो, ठिठुरण!
निर्मम, जाने न मर्म......
गर, सुन लेते मन की, तो आते न तुम!
दर्द में सिहरन, यूँ बढ़ाते न तुम!
दे गई पीड़, तेरी छुअन!
सर्द आहों में भर के, सारे ही गम,
ले आए हो, ठिठुरण!
निर्दयी बड़ी, सर्द सी ये पवन?
निर्मम, जाने न मर्म!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
वाह।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद शिवम जी
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 03 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया।
DeleteVery Nice
ReplyDeleteMany a Thanks Anjali
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-11-2020) को "चाँद ! तुम सो रहे हो ? " (चर्चा अंक- 3875) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
-- सुहागिनों के पर्व करवाचौथ की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
सादर आभार आदरणीय
Deleteगर, सुन लेते मन की, तो आते न तुम!
ReplyDeleteदर्द में सिहरन, यूँ बढ़ाते न तुम!
दे गई पीड़, तेरी छुअन!
सर्द आहों में भर के, सारे ही गम,
ले आए हो, ठिठुरण!
निर्दयी है बड़ी, सर्द सी ये पवन?
निर्मम, जाने न मर्म!
वाह बहुत सुंदर
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सधु जी।
Delete
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 4 नवंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर आभार आदरणीया पम्मी जी
Deleteवाह अनुपम
ReplyDeleteएक अर्से बाद... पुनः स्वागत है आदरणीया सदा जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deletebahut achhi article likhi hai aapne
ReplyDeletesubah jaldi kaise uthe
Thanks Dear....
DeleteKeep on visiting my Blog....
Regards