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Sunday 14 October 2018

मत कर इतने सवाल

कुछ तो रखा कर, अपने चेहरे का ख्याल......
मत कर, इतने सवाल!

ये उम्र है, ढ़लती जाएगी!
हर शै, चेहरों पर रेखाएँ अंकित कर जाएंगी,
छा जाएगा वक्त का मकरजाल!
मत कर इतने सवाल.....!

समय की, है ये मनमानी!
बेरहम समय ये, किस शै की इसने है मानी?
रेखाओं के ये बुन जाएगा जाल!
मत कर इतने सवाल.....!

बदलेगा, ये वक्त भी कभी!
डगर इक नई, अपनी ही चल देगा ये कभी!
वक्त की थमती नही कहीँ चाल!
मत कर इतने सवाल.....!

ले ऐनक, तू बैठा हाथों में!
रंग कई, नित भरता है तू अपनी आँखों में!
उम्र के रंगों का क्या होगा हाल?
मत कर इतने सवाल.....!

झुर्रियाँ, ले आएंगी ये उम्र!
इक राह वही, अन्तिम चुन लाएगी ये उम्र!
क्यूँ पलते मन में इतने मलाल?
मत कर इतने सवाल.....!

कुछ तो रखा कर, अपने चेहरे का ख्याल......
मत कर, इतने सवाल!

Tuesday 14 August 2018

स्वतंत्रता (900वीं रचना)

लहराकर ये तिरंगा, कर रही है यही पुकार!

सीमाएं हों सुरक्षित, राहें हों बाधा-रहित,
बनें निर्भीक हम, हों सदा निर्विकार,
प्रगति के पथ पर सबका हो अधिकार,
मुक्त सांसों में स्वच्छंद हों विचार,
क्लेश मिटे सबके मन से,
ऐसा हो स्वतंत्र भावों का संचार.....
लहराकर ये तिरंगा, कर रही है यही पुकार!

बौद्धिक विकास हो, सद्गुण का हो संचार,
सुरक्षित हो बेटियां, ना ही हो दुराचार,
मानवता विचरण करे, हो दुर्जन का संहार,
सुरक्षित हों जन-जन के अधिकार,
देश सँवरे, सभ्यता निखरे,
ऐसा ही हो स्वतंत्रता का एहसास...
लहराकर ये तिरंगा, कर रही है यही पुकार!

तीन रंगों में घुलते हों, जन-जन के विचार,
रंग केसरिया, नस-नस में हम लें उतार,
हरे रंग में हो घुले, आचरण और व्यवहार,
हो उजला रंग सा, मन का ये संसार,
इन तीन रंगों से हो होली,
ऐसा ही हो स्वतंत्रता का त्योहार....
लहराकर ये तिरंगा, कर रही है यही पुकार!
सभी को 15 अगस्त की हार्दिक शुभकामनाएं

Tuesday 15 May 2018

बेख्याल

यूं ही बेख्याल थे हम, किसी के ख्याल में,
कई ख्वाब देख डाले, हम यूं ही ख्वाब में........

वो रंग है या नूर है,
जो चढता ही जाए, ये वो सुरूर है,
हाँ, वो कुछ तो जरूर है!
यूं ही हमने देख डाले,
हाँ, कई रंग ख्वाब में!

यूं ही बेख्याल थे हम, किसी के ख्याल मे...

ये कैसे मैं भूल जाऊँ?
है बस ख्वाब वो, ये कैसे मान जाऊँ?
हाँ, कहीं वो मुझसे दूर है!
यूं ही उसने भेज डाले,
हाँ, कई खत ख्वाब में!

यूं ही बेख्याल थे हम, किसी के ख्याल मे...

है वो चेहरा या है शबनम!
हुए बेख्याल, बस यही सोचकर हम!
हाँ, वो कोई रंग बेमिसाल है!
यूं ही हमने रंग डाले,
हाँ, जिन्दगी सवाल में!

यूं ही बेख्याल थे हम, किसी के ख्याल में,
कई ख्वाब देख डाले, हम यूं ही ख्वाब में........

Friday 11 May 2018

भोर की पहली किरण

यूं अंगड़ाई लेकर उठी ये भोर की पहली किरण!

घुल गई है रंग जैसे बादलों में,
सिमट रही है चटक रंग किसी के आँचलों में,
विहँसती खिल रही ये सारी कलियाँ,
डाल पर डोलती हैं मगन ये तितलियाँ,
प्रखर शतदल हुए हैं अब मुखर,
झूमते ये पात-पात खोए हुए हैं परस्पर,
फिजाओं में ताजगी भर रही है पवन!

यूं अंगड़ाई लेकर उठी ये भोर की पहली किरण!

निखर उठी है ये धरा सादगी में,
मन को लग गए हैं पंख यूं ही आवारगी में,
चहकने लगी है जागकर ये पंछियाँ,
हवाओं में उड़ चली है न जाने ये कहाँ,
गुलजार होने लगी ये विरान राहें,
बेजार सा मन, अब भरने लगा है आहें,
फिर से चंचल होने लगा है ये पवन!

यूं अंगड़ाई लेकर उठी ये भोर की पहली किरण!

गूंज सी कोई उठी है विरानियों में,
गीत कोई गाने लगा है कहीं रानाईयों में,
संगीत लेकर आई ये राग बसंत,
इस विहाग का न आदि है न कोई अंत,
खुद ही बजने लगे हैं ढोल तासे,
मन मयूरा न जाने किस धुन पे नाचे,
रागमय हुआ है फिर से ये भवन!

यूं अंगड़ाई लेकर उठी ये भोर की पहली किरण!

Sunday 1 April 2018

बिखरी लाली

चलों चुन लाएं, क्षितिज से वो बिखरी लाली.....

श्रृंगकिरणों ने पट खोले हैं,
घूंधट के पट नटखट नभ ने खोले हैं,
बिखर गई है नभ पर लाली,
निखर उठी है क्षितिज की आभा,
निस्तेज हुए है अंधियारे,
वो चमक रही किरणों की बाली!

चलों चुन लाएं, क्षितिज से वो बिखरी लाली.....

श्रृंगार कर रही है प्रकृति,
किरणों की आभा पर झूमती संसृति,
मोहक रंगो संग हो ली,
सिंदूरी स्वप्न के ख्वाब नए लेकर,
नव उमंग नव प्राण लेकर,
खेलती नित नव रंगो की नव होली!

चलों चुन लाएं, क्षितिज से वो बिखरी लाली.....

खेलती है लहरों पर किरणें,
या लहरों से कुछ बोलती हैं किरणें!
आ सुन ले इनकी बोली,
झिलमिल रंगों की ये बारात लेकर,
मीठी सी ये बात लेकर,
चल उस ओर चलें संग आलि!

चलों चुन लाएं, क्षितिज से वो बिखरी लाली.....

Friday 2 March 2018

रंग

सबरंग, जीवन के कितने विविध से रंग....

कहीं सूखते पात,
बिछड़ते डाली से छूटते हाथ,
कहीं टूटी डाल,
कहीं नव-कलियों का ताल,
कहीं खिलते हँसते फूल,
वहीं मुरझाए से फूल,
जमीं पर औंधे छाए से फूल,
वहीं झूलती डाली पर विहँसते शूल,
पीले होते हरे से पात,
धीमे पड़ते रंग,
वहीं नव-अंकुरित अंग,
चटक हरे भरे से रंग,
क्रन्दन-गायन दोनो संग-संग.....

सबरंग, जीवन के कितने विविध से रंग....

कहीं मरुस्थल सारा,
फैला रजकण का अंधियारा,
वहीं बहती जलधारा,
नदियों का सुंदर आहद नाद,
गिरते प्रिय जलप्रपात,
कहीं सुनामी सा भीषण गर्जन,
जल से काँपता जन-जीवन,
कभी दुःख से सुख हारा,
समाहित कभी सुख में दुःख सारा,
मन में गूंजते अनहद नाद,
कभी पलते विषाद,
कैसा जीवन का संवाद,
विष और अमृत दोनो संग संग...

सबरंग, जीवन के कितने विविध से रंग....

Thursday 1 March 2018

होली

रंग जाऊँगा मैं प्रीत पीत, होली में ऐ मनमीत मीत...

निभाऊँगा मैं प्रीत रीत, 
तेरा बन जाऊँगा मैं मनमीत मीत,
रंग लाल टेसूओं से लेकर,
संग उलझते गेसूओं को लेकर,
गुलाल गालों पर मलकर,
मनाऊँगा होली, मैं मनमीत मीत....

रंग जाऊँगा मैं प्रीत पीत, होली में ऐ मनमीत मीत...

बरजोरी लगाऊं रंग-रंग मै,
तुझको ही लगाऊं रंग अंग-अंग मैं,
तेरे ही चलूंगा संग-संग मैं,
तेरे नाज नखरों के पतंग लेकर,
हवाओं में ही संग लेकर,
सजाऊँगा होली, मैं मनमीत मीत...

रंग जाऊँगा मैं प्रीत पीत, होली में ऐ मनमीत मीत...
 
तेरी मांग मे गुलाल भरकर,
तेरे नैनों में सिन्दूरी ख्याल रखकर,
मन के सारे मलाल धोकर,
सतरंगी राह के सब ख्वाब देकर,
हकीकत के ये रंग लेकर,
खिलाऊँगा होली, मैं मनमीत मीत...

रंग जाऊँगा मैं प्रीत पीत, होली में ऐ मनमीत मीत...

तेरी भाल पर बिंदी सजे,
रंगीन आँचल सदा खिलता रहे,
चूड़ी हमेशा बजती रहे,
पायल से रुनझुन संगीत लेकर,
ह्रदय में उठते गीत लेकर,
गाऊँगा होली ही, मैं मनमीत मीत...

रंग जाऊँगा मैं प्रीत पीत, होली में ऐ मनमीत मीत...

Sunday 25 February 2018

फागुन में तुम याद आए

क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....

तन सराबोर, हुआ इन रंगों से,
तन्हा दूर रहे, कैसे कोई अपनों से?
भीगे है मन कहाँ, फागुन के इन रंगों से,
तब भीगा वो तेरा स्पर्श, मुझे याद आए.....

क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....

घटाओं पे जब बिखरे है गुलाल,
हवाओं में लहराए है जब ये बाल,
फिजाओं के बहके है जब भी चाल,
तब सिंदूरी वो तेरे भाल, मुझे याद आए....

क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....

नभ पर रंग बिखेरती ये किरणें,
संसृति के आँचल, ये लगती है रंगने,
कलिकाएँ खिलकर लगती हैं विहँसने,
तब चमकते वो तेरे नैन, मुझे याद आए....

क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....

फागुनाहट की जब चले बयार,
रंगों से जब तन को हो जाए प्यार,
घटाओं से जब गुलाल की हो बौछार,
तब आँखें वो तेरी लाल, मुझे याद आए....

क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....

Friday 3 November 2017

स्नेह वृक्ष

बरस बीते, बीते अनगिनत पल कितने ही तेरे संग,
सदियाँ बीती, मौसम बदले........
अनदेखा सा कुछ अनवरत पाया है तुमसे,
हाँ ! ... हाँ! वो स्नेह ही है.....
बदला नही वो आज भी, बस बदला है स्नेह का रंग।

कभी चेहरे की शिकन से झलकता,
कभी नैनों की कोर से छलकता,
कभी मन की तड़प और संताप बन उभरता,
सुख में हँसी, दुख में विलाप करता,
मौसम बदले! पौध स्नेह का सदैव ही दिखा इक रंग ।

छूकर या फिर दूर ही रहकर!
अन्तर्मन के घेरे में मूक सायों सी सिमटकर,
हवाओं में इक एहसास सा बिखरकर,
साँसों मे खुश्बू सी बन कर,
स्नेह का आँचल लिए, सदा ही दिखती हो तुम संग।

अमूल्य, अनमोल है यह स्नेह तेरा,
दूँ तुझको मैं बदले में क्या? 
तेरा है सबकुछ, मेरा कुछ भी तो अब रहा ना मेरा,
इक मैं हूँ, समर्पित कण-कण तुझको,
भाव समर्पण के ना बदलेंगे, बदलते मौसम के संग।

है सौदा यह, नेह के लेन-देन का,
नेह निभाने में हो तुम माहिर,
स्नेह पात लुटा, वृक्ष विशाल बने तुम नेह का,
छाया देती है जो हरपल,
अक्षुण्ह स्नेह ये तेरा, क्या बदलेगा मौसम के संग?

Friday 3 February 2017

रंगमई ऋतुराज

आहट पाकर त्रृतुराज की, सजाई है सेज वसुन्धरा ने....

हो रहा पुनरागमन, जैसे किसी नवदुल्हन का,
पीले से रंगों की चादर फैलाई हैं सरसों ने,
लाल रंग फूलों से लेकर मांग सजाई है उस दुल्हन ने,
स्वर में कंपन, कंठ में राग, आँखों में सतर॔गे सपने....

जीवन का अक्षयदान लेकर, दस्तक दी है त्रृतुराज ने....

हो रहा पुनरागमन, जैसे सतरंगी जीवन का,
सात रंगों को तुम भी भर लेना आँखों में,
उगने देना मन की जमीन पर, दरख्त रंगीन लम्हों के,
खिला लेना नव कोपल दिल की कोरी जमीन पे....

विहँस रहा ऋतुराज, बसन्ती अनुराग घोलकर रंगों में....

अब होगा आगमन, फगुनाहट लिए बयारों का,
मस्ती भरे तरंग भर जाएंगे अंग-अंग में,
रंग बिखेरेंगी ये कलियाँ, रंग इन फूलों के भी निखरेंगे,
भींगेगे ये सूखे आँचल, साजन संग अठखेली में....

गा रहा आज ऋतुराज, डाली-डाली कोयल की सुर मे...

Sunday 14 August 2016

तीन रंग

चलो भिगोते हैं कुछ रंगों को धड़कन में,
एक रंग रिश्तों का तुम ले आना,
दूजा रंग मैं ले आऊँगा संग खुशियों के,
रंग तीजा खुद बन जाएंगे ये मिलकर,
चाहत के गहरे सागर में डुबोएंगे हम उन रंगों को....

चलो पिरोते हैं रिश्तों को हम उन रंगों में,
हरे रंग तुम लेकर आना सावन के,
जीवन का उजियारा हम आ जाएंगे लेकर,
गेरुआ रंग जाएगा आँचल तेरा भीगकर,
घर की दीवारों पर सजाएँगे हम इन तीन रंगों को....

आशा के किरण खिल अाएँगे तीन रंगों से,
उम्मीदों के उजली किरण भर लेना तुम आँखों में,
जीवन की फुलवारी रंग लेना हरे रंगों से,
हिम्मत के चादर रंग लेना केसरिया रंगों से,
दिल की आसमाँ पर लहराएँगे संग इन तीन रंगों को....

Tuesday 14 June 2016

वो तस्वीर

बनती-बिगरती बादलों में उलझी सी इक तस्वीर,

हर क्षण रंग रूप बदलती वो तस्वीर,
पल पल दृग को वो छलती,
मनमोहक भावों से वो मन को हरती,
खुली जटाओं मे बादल की कहीं गुम हो जाती,

बरसती-बिखरती बादलों में बिखरी सी वो तस्वीर,

आकाश में फिर उभरती वो तस्वीर,
बादलों संग अठखेलियाँ करती,
चंचल सी स्वच्छंद विचरती वो तस्वीर,
भावप्रवण मन को कर खुद भावविहीन हो जाती,

जीवन के कितने ही किस्से कह जाती वो तस्वीर,

निःस्वार्थ जीवन जीती वो तस्वीर,
कुछ पल जग के दुख हर लेती,
आँखों में सपने जीने के भरती वो तस्वीर,
कर्मों की राह पर चलती फना हर बार वो होती,

कर्मपथ पर चलना सिखाती उलझी सी वो तस्वीर।

Sunday 8 May 2016

बेकरारियाँ

अब कहाँ दिखते हैं वो बेकरारियाें के पल,
जाम हसरतों के लिए कभी दूर वो जाते थे निकल,
क्या रंग बदले हैं मौसम ने, अब वो भी गए हैं बदल?

पल वो मचलता था उन बेकरारियों के संग,
अंगड़ाईयाँ लेती थी करवटें उनकी यादों के संग,
अब बिखरा है वो पल कहीं, क्या वो भी रहे हैं बिखर?

सुलग रही चिंगारियाँ, हसरतों के लगे हैं पर,
जल रही आज बेकरारियाँ, पर वो तो हैं बेखबर,
हम तो वो मौसम नहीं, यहाँ रोज ही जाते है जो बदल!

क्या अब भी है वहाँ बेकरारियाें के बादल?
सोंचता है ये बेकरार दिल आज फिर होके विकल!
भले रंग बदले हैं मौसमों ने, नेह नही सकता है बदल!

Wednesday 6 April 2016

कल मिले ना मिले

 
दरमियाँ जीवन के इन वयस्त क्षणों के,
स्वच्छंद फुर्सत के एहसास भी हैं जरूरी! ..सही है ना?

दरमियाँ इन धड़कते दिलों के,
धड़कनों के एहतराम भी हैं जरूरी !
कही खो न जाएँ यहीं पे हम,
खुद से खुद का पैगाम भी है जरूरी!

तुम सितारों मे घुमती ही रहो,
नजरों से जमीं का दीदार भी है जरूरी!
आईने मे खुद का दीदार कर लो,
तारीफ चेहरे को गैरों की भी है जरूरी!

जिन्दगी में कितना ही सफल हो,
खुशी पर अपनों की खुशी भी है जरूरी!
जिन्दगी में तुम मिलो न मिलो,
मिलते रहने की कशिश भी है जरूरी!

मौसमों की तरह रंग बदल लो,
मौसम रिमझिम फुहार के भी हैं जरूरी!
कल वक्त ये फिर मिले ना मिले,
आज जी भर के जी लेना भी है जरूरी!

दरमियाँ जीवन के इन वयस्त क्षणों के,
स्वच्छंद फुर्सत के एहसास भी हैं जरूरी! ..सही है ना?

Monday 21 March 2016

विरहन की होली

फिजाओं में हर तरफ धूल सी उड़ती गुलाल,
पर साजन बिन रंगहीन चुनर उस गोरी के।

रास न आई उसको रंग होली की,
मुरझाई ज्यों पतझड़ में डाल़ बिन पत्तों की,
रंगीन अबीर गुलाल लगते फीकी सी,
टूटे हृदय में चुभते शूल सी ये रंग होली की।

वादियों में हर तरफ रंगो की रंगीली बरसात,
लेकिन साजन बिन कोरी चुनर उस विरहन के।

कोहबर में बैठी वो मुरझाई लता सी,
आँसुओं से खेलती वो होली आहत सी,
बाहर कोलाहल अन्दर वो चुप चुप सी,
रंगों के इस मौसम में वो कैसी गुमसुम सी।

कह दे कोई निष्ठुर साजन से जाकर,
बेरंग गोरी उदास बैठी विरहन सी बनकर,
दुनियाँ छोटी सी उसकी लगती उजाड़ साजन बिन,
धानी चुनर रंग लेती वो भी, गर जाती अपने साजन से मिल।

Monday 7 March 2016

वो करती क्या? गर साँवला रंग न मेरा होता!

रंग साँवला मेरा, है प्यारा उनको,
वो करती क्या? गर साँवला रंग न मेरा होता......!

शायद!.....शायद क्या? सही में.....

पल पल वो तिल तिल मरती,
अन्दर ही अन्दर जीवन भर घुटती,
मन पर पत्थर रखकर वो जीती,
विरक्ति जीवन से ही हो जाती,
या शायद वो घुट घुट दम तोड़ देती!

शायद!.....शायद क्या? सही में.....

पलकें अपलक उनकी ना खुलती,
भीगी चाँदनी में रंग साँवला कहाँ देेखती,
पुकारती कैसे फिर अपने साँवरे को,
विरहन सी छंदहीन हालत होती,
शायद जीवन ही सारी पीड़ा मय होती!

शायद!.....शायद क्या? सही में.....

नैनों से सपने देखना वो भूल जाती,
रातें बीतती उनकी करवट लेती,
मन का चैन कही वादियों में वो ढ़ूंढ़ती,
दिन ढ़ल जाते उनके ख्वाहिशों में,
ये रातें शायद हसरतों वाली ना होती!

शायद!.....शायद क्या? सही में.....

आँसुओं मे डूबी ये जीवन होती,
रातों में उनकी आँखें डबडब जगती,
जाने किन ख्यालों में खोई होती,
जीवन सारा बोझ सा वो ढ़ोती,
जीते जी शायद वो बेचारी मर जाती!

शायद!.....शायद क्या? सही में.....
होता क्या? गर होता रंग गोरा मेरा........!

प्यारा प्यारा सा ये जीवन न होता,
एकाकीपन इस मन में पलता,
ना तू सजनी होती न मैं तेरा साजन होता,
मेरा भी कोई जीवन साथी न होता,
अधूरी तुम होती और अधूरा मैं मर जाता!

शायद!.....शायद क्या? सही में.....
वो करती क्या? गर साँवला रंग न मेरा होता......!

Sunday 28 February 2016

होली तुम संग

प्रिय, होली तुम संग खेलूंगा, रंगों और उमंगों से,

रंग जाऊंगा जीवन तेरा, खुशियों की रंगों से,
सूखेगी न चुनरी तेरी, सपनों की इन रंगों से,
चाहतें भर दूंगा जीवन मैं, अपने ही रंगों से।

प्रिय, होली तुम संग खेलूंगा, रंगों और उमंगों से।

जनमों तक ना छूटेगी, ऐसा रंग लगा जाऊंगा,
तार हृदय के रंग जाएंगे, दामन में भर जाऊंगा,
आँखें खुली रह जाएंगी, सपने ऐसे सजाऊंगा।

तेरे सपनों की रंगों से, जीवन की फाग खेलूंगा।
प्रिय, होली तुम संग खेलूंगा, रंगों और उमंगों से।

Monday 1 February 2016

फागुन रंग शिशिर संग

फागुन रंग शिशिर संग छाया,
सरस रस घट भर रंग लाया,
सजनी का उर अति हर्षाया,
सरस शिशिर सृष्टि पर लहराया।

जीर्ण आवरण उतरे वृक्षों के,
श्रृंगार कोमल पल्लव से करके,
सुशोभित कण-कण वसुधा के,
मनभावन शिशिर आज मदमाया।

हर्षित मुखरित सृष्टि के क्षण,
मधुरित धरा का कण-कण,
मधुर रसास्वाद का आलिंगण,
शिशिर अमृत रस भर ले अाया।

डाल-डाल फूलों से कुसुमित,
पेड़ तृण मूल फसल आनंदित,
मुखरित पल्लवित हरित हरित,
सरस कुसुम पल्लव मन को भाया।

Saturday 30 January 2016

होली

आयो होली रंग अति सुभावन, 
रंग डालूँ जीवन प्रीतम के संग,
राग विहाग गाऊँ चित्त-भावन।

विविध रंग मोहक मनभावन,
डारुँ मुख पे शोभे अतिरंजन,
नयन अभिराम अतिसुहावन।

रत-चुनरी रंग डारूँ सजनी के,
डारूँ रंग मनभावन जीवन के,
मुखमंडल मुखरित सजनी के।

चाहुँ नित फागुन अति-रंजित,
सजनी संग जीवन रंग-रंजित,
धानी चुनर हृदय अभिरंजित।

Friday 22 January 2016

मधुपान


उन हसीन लम्हातों की खामोशियों मे,
आहट की कल्पना भी प्यारी है तुम्हारी,
रंग कई बिखर जाते हैं आँखों के सामने
डूब जाता है सारा आलंम गुजरिशों में।

दूर एक साया दिखता बस तुम्हारी तरह,
शायद सुन लिया है गीत मेरा तुमने भी,
पास आते हो तुम किसी मंजर की तरह,
गूंज उठते हैं संगीत के स्वर ख्यालों में।

याद बनकर जब कभी छाते हो दिल पर,
शहनाईयाँ सी बज उठती हैं विरानियों मे,
सैंकड़ों फूल खिल उठते मधुरस बरसाते,
झूम उठता हृदय का भँवर मधुर पान से।