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Friday, 30 September 2016

बावस्ता

व्यस्तताओं के हाथों विवश होने के बावजूद,
कई जरूरतों से बावस्त हूँ मैं......

जरूरतों में सबसे ऊपर है मेरी सृजनशीलता,
सृजन की ऊर्जा ही तो है सृष्टि का वाहक,
कल्र्पनाओं के परे रचती है भंगिमाएँ,
रूबरू कराती है अनदेखे स्वप्नों के लहरों से,
दृष्टिगोचर होती है तब इक अलग ही दुनियाँ,
रचनाओं को जन्म देने लगती हैं सृजनशीलता....

बावस्त होता हूँ फिर मैं अनसुनी भावनाओं से,
कांटे भावनाओं के फूलों संग चुनकर,
रख लेता हूँ सृजनशीलता की धागों में गूँथकर,
निखर जाते हैं कांटे,संग फूलों के रहकर,
विहँसती जन्म लेती है फिर कोमल सी भावनाएँ,
कैद हो जाता हूँ मैं उन भावनाओं में बहकर......

जरूरत होती है फिर एहसासों को शक्ल देने की,
व्यस्तताओं में पिसे होते हैं एहसास के कण,
जज्बात बिखर से जाते हैं बिन अल्फाज,
कोशिश करता हूँ एहसासों को समझाने की,
शब्दों में समेट लेता हूँ उन बिखरे जज्बातों को,
बावस्त होता हूँ फिर मैं एहसासों के तरानों से.....

व्यस्तताओं के हाथों विवश होने के बावजूद,
कई जरूरतों से बावस्त हूँ मैं......

Wednesday, 27 April 2016

व्यस्त जिन्दगानी

व्यस्त लम्हे, हकीकत हैं ये जीवन के,
पल भर को फुर्सत नही साँसें लेने की चैन के,
रफ्तार से घूम़ती हैं, ये पहिए जिन्दगी के,
जरूरतों के आगे पिसती है, जरूरत जिन्दगानी के।

कब रुके हम, कब साँसों को झकझोरा,
जाने किन राहों पर हमने खुद को ही रख छोड़ा,
खुद से ही पूछते है हम कभी खुद का पता,
व्यस्तताओं के आगे विवश, हमारी आवश्यकता।

शून्य संग्याहीन हो चुके मन के भाव सारे,
निर्णय के दोराहों पर जाने कितने ही पल गुजारे,
हारी है चाह मन की असंख्य बार जीवन में,
भौतिकता के आगे हरबार टूटे हैं घर कल्पनाओं के।

कोमलता हंदय की दबी व्यस्तताओं में,
खूबसूरती लम्हो की रहती अनदेखी वर्जनाओं में,
जज्बातों के घरौंदे जलते जीवन की भट्ठी में,
एहसासों के राख पर ही महल बनते जिन्दगानी के।

तन्द्रा भंग हुई अब व्यस्त लम्हों की मजार पर,
कशिश आह भरी दिल में, रंजिश उन गुजरे लम्हों पर
आँसू छलके हैं नैनों में, हृदय हो रहा बेजार पर,
गुजरे वक्त के आगे विवश, बैठा जज्बातो के ढ़ेर पर।

Wednesday, 6 April 2016

कल मिले ना मिले

 
दरमियाँ जीवन के इन वयस्त क्षणों के,
स्वच्छंद फुर्सत के एहसास भी हैं जरूरी! ..सही है ना?

दरमियाँ इन धड़कते दिलों के,
धड़कनों के एहतराम भी हैं जरूरी !
कही खो न जाएँ यहीं पे हम,
खुद से खुद का पैगाम भी है जरूरी!

तुम सितारों मे घुमती ही रहो,
नजरों से जमीं का दीदार भी है जरूरी!
आईने मे खुद का दीदार कर लो,
तारीफ चेहरे को गैरों की भी है जरूरी!

जिन्दगी में कितना ही सफल हो,
खुशी पर अपनों की खुशी भी है जरूरी!
जिन्दगी में तुम मिलो न मिलो,
मिलते रहने की कशिश भी है जरूरी!

मौसमों की तरह रंग बदल लो,
मौसम रिमझिम फुहार के भी हैं जरूरी!
कल वक्त ये फिर मिले ना मिले,
आज जी भर के जी लेना भी है जरूरी!

दरमियाँ जीवन के इन वयस्त क्षणों के,
स्वच्छंद फुर्सत के एहसास भी हैं जरूरी! ..सही है ना?