कोई, क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
कितना, टूटा क्या!
वो वृक्ष घना था, या इक वन था,
सावन था, या इक घन था,
विस्तृत जीवन का, लघु आंगन था,
विस्मित करता, वो हर क्षण था!
कोई क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
वो बचपन था, या अल्हड़पन था,
यौवन में डूबा, इक तन था,
इक दर्पण था, या, मेरा ही मन था,
कंपित होता, हर इक कण था!
कोई क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
वो आशाओं का, अवलोकन था,
अदृश्य भाव का, दर्शन था,
भावप्रवण होता, गहराता क्षण था,
विह्वल सा, वो आकुल मन था!
कोई, क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
कितना, टूटा क्या!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)