रहने दो एकाकी तुम, मुझको रहने दो तन्हा!
कचोटते हैं गम, ग़ैरों के भी मुझको,
मायूस हो उठता हूँ, उस पल मैं,
टपकते हैं जब, गैरों की आँखों से आँसू,
व्यथित होता हूँ, सुन-कर व्यथा!
रहने दो एकाकी तुम, मुझको रहने दो तन्हा!
किसी की, नीरवता से घबराता हूँ,
पलायन, बरबस कर जाता हूँ,
सहभागी उस पल, मैं ना बन पाता हूँ,
ना सुन पाता हूँ, थोड़ी भी व्यथा!
रहने दो एकाकी तुम, मुझको रहने दो तन्हा!
क्यूँ बांध रहे, मुझसे मन के ये बंधन,
गम ही देते जाएंगे, ये हर क्षण,
गम इक और, न ले पाऊँगा अपने सर,
ना सह पाऊँगा, ये गम सर्वथा !
रहने दो एकाकी तुम, मुझको रहने दो तन्हा!
एकाकी खुश हूँ मैं, एकाकी ही भला,
जीवन पथ पर, एकाकी मैं चला,
दुःख के प्रहार से, एकाकी ही संभला,
बांधो ना मुझको, खुद से यहाँ!
रहने दो एकाकी तुम, मुझको रहने दो तन्हा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
कचोटते हैं गम, ग़ैरों के भी मुझको,
मायूस हो उठता हूँ, उस पल मैं,
टपकते हैं जब, गैरों की आँखों से आँसू,
व्यथित होता हूँ, सुन-कर व्यथा!
रहने दो एकाकी तुम, मुझको रहने दो तन्हा!
किसी की, नीरवता से घबराता हूँ,
पलायन, बरबस कर जाता हूँ,
सहभागी उस पल, मैं ना बन पाता हूँ,
ना सुन पाता हूँ, थोड़ी भी व्यथा!
रहने दो एकाकी तुम, मुझको रहने दो तन्हा!
क्यूँ बांध रहे, मुझसे मन के ये बंधन,
गम ही देते जाएंगे, ये हर क्षण,
गम इक और, न ले पाऊँगा अपने सर,
ना सह पाऊँगा, ये गम सर्वथा !
रहने दो एकाकी तुम, मुझको रहने दो तन्हा!
एकाकी खुश हूँ मैं, एकाकी ही भला,
जीवन पथ पर, एकाकी मैं चला,
दुःख के प्रहार से, एकाकी ही संभला,
बांधो ना मुझको, खुद से यहाँ!
रहने दो एकाकी तुम, मुझको रहने दो तन्हा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 10 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद दीदी। आभारी हूँ ।
Deleteएकाकी खुश हूँ मैं, एकाकी ही भला,
ReplyDeleteजीवन पथ पर, एकाकी मैं चला,
दुःख के प्रहार से, एकाकी ही संभला,
बांधो ना मुझको, खुद से यहाँ!
बेहतरीन रचना आदरणीय
विनम्र आभार आदरणीय अनुराधा जी।
Deleteबेहतरीन रचना.... सादर नमन
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय कामिनी जी।
Deleteवसंत ऋतू में ऐसा एकाकीपन, ऐसी विरह-कथा?
ReplyDeleteमिर्ज़ा ग़ालिब होते तो कहते -
'या इलाही ये माजरा क्या है?'
हा हा हा! आदरणीय गोपेश्वर जी, प्रहसनपूर्ण बेहतरीन प्रतिक्रिया हेतु साधुवाद ।
Deleteवाह¡
ReplyDeleteअप्रतिम अभिव्यक्ति ।
विनम्र आभार आदरणीय कुसुम जी।
Deleteविनम्र आभार आदरणीय अमित निश्छल जी।
ReplyDeleteएकाकी खुश हूँ मैं, एकाकी ही भला,
ReplyDeleteजीवन पथ पर, एकाकी मैं चला,
दुःख के प्रहार से, एकाकी ही संभला,
बांधो ना मुझको, खुद से यहाँ!....बहुत सुन्दर सृजन आदरणीय
सादर
विनम्र आभार आदरणीय अनीता जी।
Deleteबहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आया....बहुत अच्छा लगा...वहीँ पुराणी सुन्दर और भावपूर्ण अनुभूतियाँ
ReplyDeleteपुनः स्वागत है आदरणीय संजय भास्कर जी। प्रेरक शब्दों हेतु आभारी हूँ ।
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