युग बीता, न बीती इक प्रतीक्षा.....
निःसंकोच, अनवरत, बहा वक्त का दरिया,
पलों के दायरे, होते रहे विस्तृत!
समेटे इक आरजू, बांधे तेरी ही जुस्तजू,
रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत!
हो जाने दो, पलों को, कुछ और संकुचित,
ये विस्तार, क्यूँ हो और विस्तृत!
हो चुका आहत, बह चुका वक्त का रक्त,
रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत!
कब तक जिए, घायल सी, ये जिजीविषा!
वियावान सी, हो चली हर दिशा,
झांक कर गगन से, पूछता वो ध्रुव तारा,
रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत!
जलती रही आँच इक, सुलगती रही आग,
लकड़ियाँ जलीं, बन चली राख,
पड़ी हवनकुंड में, कह रही जिजीविषा,
रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत!
युग बीता, न बीती इक प्रतीक्षा.....
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
हो जाने दो, पलों को, कुछ और संकुचित,
ReplyDeleteये विस्तार, क्यूँ हो और विस्तृत!
हो चुका आहत, बह चुका वक्त का रक्त,
रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत...सुंदर
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया। ।।।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 13 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलमंगलवार (13-7-21) को "प्रेम में डूबी स्त्री"(चर्चा अंक 4124) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
विनम्र आभार आदरणीया
Deleteसुन्दर व्यंजना - प्रतीक्षा के क्षण ऐसे ही दूभर होते हैं.
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया
Deleteप्रतीक्षा तो सृष्टि की सबसे खूबसूरत जीवट आशा हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय सर।
प्रणाम
सादर।
विनम्र आभार आदरणीया। पुनः स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर।
Deleteहृदय को चीरकर भीतर चले गए आपके शब्द। अधिक क्या कहूं पुरुषोत्तम जी? अभिभूत हो गया हूं, नि:शब्द हो गया हूं।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय। अभिभूत हूँ।
Deleteप्रतीक्षा में ही मिलन का आनंद छुपा है
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया
DeleteWaiting for Godot !
ReplyDeleteहर किसी को किसी का इंतज़ार है.
इंतज़ार में जीने को दिल बेकरार है !
वाह !
विनम्र आभार आदरणीया
Deleteअहा, सुन्दर भाव, सुन्दर शब्द।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय
Deleteसुंदर भाव । प्रतीक्षा के साथ उम्मीद जुड़ी होती है ।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया
Deleteविह्वल करती हुई कृति और विवशता की अनुभूति ....
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया
Deleteहो जाने दो, पलों को, कुछ और संकुचित,
ReplyDeleteये विस्तार, क्यूँ हो और विस्तृत!
हो चुका आहत, बह चुका वक्त का रक्त,
रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत!
बेहद सुंदर रचना
विनम्र आभार आदरणीया
Deleteलम्बा इंतज़ार ... कई बार प्रतीक्षा पूर्ण नहीं होती, जीवन पूर्ण हो जाता है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteयुग बीता, न बीती इक प्रतीक्षा....
ReplyDeleteप्रतीक्षा किसी संवेदनशील इंसान के लिए सबसे दर्दनाक अनुभव है तो एस दर्द में आशा का एकमात्र आधार | विरह के पलों की सशक्त अभिव्यक्ति जो भावपूर्ण रचना के रूप में संजोयी गयी है | हार्दिक शुभकामनाएं|
अभिनन्दन व विनम्र आभार आदरणीया रेणु जी।
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