ले जाऊँ किधर, उनकी यादों का शहर,
भटकाए, वही तिश्नगी, दर-बदर!
भूलती है कहाँ, दो आँखों का वो जहां,
पिघलते धूप सा, हल्का वो धुआँ,
मिले जो रंग वही, कहीं मैं जाऊँ ठहर,
भटकाए, वही तिश्नगी, दर-बदर!
ले जाऊँ किधर....
वही तो रंग है, पर, वो फागुन है कहाँ,
भीगा सा, बादलों का, वो कारवाँ,
बे-वक्त, उमर आया, था एक पतझड़,
भटकाए, वही तिश्नगी, दर-बदर!
ले जाऊँ किधर....
सिमटी-सिमटी, गुजर रही, वो चांदनी,
ज्यूँ राग से, मुकर गई हो, रागिनी,
धूँधलाती रही, रात भर, वही रहगुजर,
भटकाए, वही तिश्नगी, दर-बदर!
ले जाऊँ किधर, उनकी यादों का शहर,
भटकाए, वही तिश्नगी, दर-बदर!
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