Thursday, 31 December 2015

जो छोड़ गए हैं तन्हा

जो छोड़ गए हैं तन्हा,
वो पूछते हैं अक्सर, कैसे हो?
शायद! तन्हाई में कैसे जीता हूँ,
यही जानना चाहता है वो!

तो सुन लो...

नसों में रक्त प्रवाह है जारी,
धड़कनें अभी रुकी नही हैं,
सासों का प्रवाह निरंतर है,
हंदय मे कंपण अभी है शेष,
पलकें अब भी खुली हुई है,
आँखें देख पाती हैं नभ को,
कोशिकाएँ अभी मरी नही हैं।

जो छोड़ गए हैं तन्हा,
वो पूछते हैं अक्सर, कैसे हो?

तो और सुनो,

स्वर कानों मे अब भी जाते है,
स्पर्श महसूस कर सकता हूँ,
जिह्वा स्वाद ले पाती हैं...
सूरज का उगना देखता हूँ
सामने अस्त हो जाना भी,
जीवन देखता हूँ और मृत्यु भी,
नित्य क्रिया कर्म अभी है जारी।

जो छोड़ गए हैं तन्हा,
वो पूछते हैं अक्सर, कैसे हो?

जीवन साँसों से चलता है,
दिल धड़कते हैं स्नायु से,
तंत्रिकाएँ चलाती है सोंच को।

पर दिलों के एहसास....?

एहसास मर जाते हैं तन्हाई में,
एहसास का स्पंदन साथ ढूंढ़ता है प्रीत का।
वर्ना जीवन तिल-तिल मरता है।
साँसों के आने जाने से केवल,
जीवन कहाँ चलता है?

उसने खून किया जीवन का,
तन्हाई मे जिसने भी छोड़ा,
पर साथ निभाता कौन अन्त तक,
मृत्यु से पहले .....!
सांसे तन्हा छोड़ जाती तन को,
शरीर छोड़ जाता है तन्हा मन को।

जो छोड़ गए हैं तन्हा,
वो पूछते हैं अक्सर, कैसे हो?

No comments:

Post a Comment