ओ मानव !
निराशा तज कर तुम आशावान बनो,
कर्म पथ पर नित प्रगतिशील रहो,
कर्म पथ पर नित प्रगतिशील रहो,
मलयनील के उत्तुंग शिखरों तक,
तुम पहुचो निर्बाध गति से,
कनक शिखर पर तेरे ,
सूरज भी आएं शीष झुकाने,
कर्म पथ पर चलकर,
तुम बनो प्रेरणा जग हेतु,
असंख्य हाथ उठे तेरी इशारों पर,
असंख्य शीष उठकर तेरी राह निहारे।
जिन्दगी के आईने प्रखर हो इतने,
प्रबुद्ध बनकर चमको तुम इतने,
कि बीते कल के घनघोर अंधेरे,
रौशनी में शरमाकर धुल जाएं इनमें,
आशा का नव संचार हो,
हो फिर नया सवेरा,
हर पल जीवन में हो उजियारा,
निष्कंटक पथ प्रशस्त हों प्रगति के,
हर पल जीवन में हो उजियारा,
निष्कंटक पथ प्रशस्त हों प्रगति के,
कोटि-कोटि दीप जलकर तेरी राह सवाँरे।
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