Thursday, 24 December 2015

तू चुपके से सुन इस पल की धुन

सुबह की पुरवाई मे घुली तेरी महक,
मेरी आँखों के गीले कोरों से,
मखमली ख्वाबों को चुनकर,
शाम ढ़़ले तन्हाई के एहसासों कों तजकर,
तू चुपके से सुन, इस पल की धुन,
दो दिलों की धड़कनें, मैं और तुम।

चांदनी सम तुम, शांत बादल सम मैं,
तुम बिखरो मुझपर मृदु चांदनी सम,
छा जाऊँ मैं तुमपर विस्तृत आकाश बन,
तुम हो जाओ चंचल निर्मल नदी सी,
सागर सा विस्तृत पूर्ण हो जाऊँ मैं।

नीलाभवर्ण बादलों में छिपी इन बूँदों सम,
वो सुरमयी ख़्वाब हैं, जो देखे हैं हमने तुम संग
अब कणों नें फिर छेड़े है वही धुन, 
चहुँ ओर है शांत सा कोलाहल,
कोयल भी है चुप सुनने को फिर से वही धुन,
तू चुपके से सुन, इस पल की धुन,
दो दिलों की धड़कनें, मैं और तुम।

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