Thursday, 17 December 2015

शख्शियत

शख्शियत.......

दरख्तों सी होनी चाहिए शख्शियत हमारी,
जड़े इतनी पैबंद के
हवा के मामुली झौंके हिला न सके इन्हें,
शाख इतने विशाल के,
दुनियां समा जाए इनकी आगोश में,
छाए इतने घने के,
पथिक क्षण भर विश्राम को मचल उठे
जीवन इतना महान के,
धरा झूम उठे, आसमां भी नाज करे,
मृ्त्यु इतनी शानदार के,
मानस रुपी घरों में चौखटों की तरह अंकित हो जाए

काश! शख्शियत दरख्तों सी बन पाती हमारी...
सूखे ठूंठ दरख्त नही,
बरगद सा विशाल दरख्त,,,,,,,,

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