पथ पर ठहर मन ये सोचे,
क्या बीते वर्ष मिला है मुझको।
चिरबंथन का मधुर क्रंदन या
लघु मधुकण के मौन आँसू।
स्वच्छंद नीला विशाल आकाश या
अनंत नभमंडल पर अंकित तारे।
चिन्ता, जलन, पीड़ा सदियों का या,
दो चार बूँद प्यार की मधुमास।
अवसाद मे डूबा व्यथित मन या
निज जन के विछोह की अमिट पीड़ा।
मौन होकर ठहर फिर सोचता मन,
क्या बीते वर्ष मिला है मुझको।
No comments:
Post a Comment