मत निकलना, तुम!
कभी, मेरी कल्पनाओं के, घेरों से बाहर!
यही तो है, जो, बांधता है मुझको,
वेधता है, संज्ञाशून्ताओं को,
समझने की कोशिश में, तुझको सोचता हूँ,
लकीरों में, बुनता हूँ तुम्हें ही,
मिथक हो, या कितना भी पृथक हो,
पर, लगते सार्थक से हो!
शायद, जब तलक कल्पनाओं में हो!
मत निकलना, तुम!
कभी, मेरी कल्पनाओं के, घेरों से बाहर!
झूमती हुई, डालियों सी, चंचलता,
पृथक सी, अल्हड़ मादकता,
प्राकृत जीवंतताओं में, देखता हूँ तुझको,
समस्त विकृतियों से, अलग,
परिपूर्णताओं की, हदों से अलंकृत,
हर, रचनाओं में श्रेष्ठ!
शायद, जब तलक कल्पनाओं में हो!
मत निकलना, तुम!
कभी, मेरी कल्पनाओं के, घेरों से बाहर!
यूँ तो, इन विसंगतियों से परे कौन,
लेकिन, रहे कोई, जैसे मौन,
ताकती सी मूरत, झांकती सी एक सूरत,
अल्हड़, बिल्कुल नादान सी,
ज्यूँ, अरण्य में, विचरती हो मोरनी,
खुद ही, से अनभिज्ञ!
शायद, जब तलक कल्पनाओं में हो!
मत निकलना, तुम!
कभी, मेरी कल्पनाओं के, घेरों से बाहर!
करोड़ों उभरते सवाल, उनमें तुम,
क्यूँ रहें, बन एकाकी हम!
ओढ़े आवरण, क्यूँ न संजोएं इक भरम!
करूँ, मौजूदगी का आकलन,
रखूँ, समय की सेज पर तुम्हें पृथक,
क्यूँ मानूं, तुमको मिथक!
शायद, जब तलक कल्पनाओं में हो!
मत निकलना, तुम!
कभी, मेरी कल्पनाओं के, घेरों से बाहर!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
झूमती हुई, डालियों सी, चंचलता,
ReplyDeleteपृथक सी, अल्हड़ मादकता,
प्राकृत जीवंतताओं में, देखता हूँ तुझको,
समस्त विकृतियों से, अलग,
परिपूर्णताओं की, हदों से अलंकृत,
हर, रचनाओं में श्रेष्ठ!
शायद, जब तलक कल्पनाओं में हो...…सुंदर रचना 🌷🌹🌷
शुक्रिया, विनम्र आभार आदरणीया शकुन्तला जी।
Deleteकल्पनाओं का सुन्दर,काव्यात्मक चित्र....बढ़िया!
ReplyDeleteशुक्रिया, विनम्र आभार आदरणीया....
Deleteबेहद खूबसूरत पंक्तियाँ आदरणीय सर,लाजवाब अभिव्यक्ति। सादर प्रणाम 🙏
ReplyDeleteआभार आँचल जी। बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।
Deleteप्रेम पगी, मधुर संगीत के जैसा ... अच्छा लगता है डूबना ।
ReplyDeleteशुक्रिया अमृता तन्मय जी। आपने सराहा, रचना सफल हुई।
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशुक्रिया आभार आदरणीय ...
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-4-21) को "काश में सोलह की हो जाती" (चर्चा अंक 4035) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
शुक्रिया आभार आदरणीया ...
Deleteपंक्तियां का बहुत ही गहरे भाव
ReplyDeleteशुक्रिया आभार आदरणीय सवाई सिंह राजपुरोहित जी ...स्वागत है आपका।
Deleteनूतनवर्षाभिनंदन...
ReplyDeleteनवीन वर्ष के नूतन पल से माँ अम्बे सबका कल्याण करे...
जगतनियन्ता सबको शांति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि प्रदान करे...
शक्ति आराधना पर्व चैत्र नवरात्रि पर माँ दुर्गा की स्नेहदृष्टि आप सब पर बनी रहे
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
Deleteकल्पना के पंखों पर सवार होकर कवि अपना एक लोक गढ़ लेता है और बचा रखता है उसमें काव्य की सरसता को !
ReplyDeleteशुक्रिया आभार आदरणीया ...
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