Sunday, 11 April 2021

वहीं रहना

मत निकलना, तुम!
कभी, मेरी कल्पनाओं के, घेरों से बाहर!

यही तो है, जो, बांधता है मुझको,
वेधता है, संज्ञाशून्ताओं को,
समझने की कोशिश में, तुझको सोचता हूँ,
लकीरों में, बुनता हूँ तुम्हें ही,
मिथक हो, या कितना भी पृथक हो,
पर, लगते सार्थक से हो!
शायद, जब तलक कल्पनाओं में हो!

मत निकलना, तुम!
कभी, मेरी कल्पनाओं के, घेरों से बाहर!

झूमती हुई, डालियों सी, चंचलता,
पृथक सी, अल्हड़ मादकता,
प्राकृत जीवंतताओं में, देखता हूँ तुझको,
समस्त विकृतियों से, अलग,
परिपूर्णताओं की, हदों से अलंकृत,
हर, रचनाओं में श्रेष्ठ!
शायद, जब तलक कल्पनाओं में हो!

मत निकलना, तुम!
कभी, मेरी कल्पनाओं के, घेरों से बाहर!

यूँ तो, इन विसंगतियों से परे कौन,
लेकिन, रहे कोई, जैसे मौन,
ताकती सी मूरत, झांकती सी एक सूरत,
अल्हड़, बिल्कुल  नादान सी,
ज्यूँ, अरण्य में, विचरती हो मोरनी,
खुद ही, से अनभिज्ञ!
शायद, जब तलक कल्पनाओं में हो!

मत निकलना, तुम!
कभी, मेरी कल्पनाओं के, घेरों से बाहर!

करोड़ों उभरते सवाल, उनमें तुम,
क्यूँ रहें, बन एकाकी हम!
ओढ़े आवरण, क्यूँ न संजोएं इक भरम!
करूँ, मौजूदगी का आकलन,
रखूँ, समय की सेज पर तुम्हें पृथक,
क्यूँ मानूं, तुमको मिथक!
शायद, जब तलक कल्पनाओं में हो!
 
मत निकलना, तुम!
कभी, मेरी कल्पनाओं के, घेरों से बाहर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

18 comments:

  1. झूमती हुई, डालियों सी, चंचलता,
    पृथक सी, अल्हड़ मादकता,
    प्राकृत जीवंतताओं में, देखता हूँ तुझको,
    समस्त विकृतियों से, अलग,
    परिपूर्णताओं की, हदों से अलंकृत,
    हर, रचनाओं में श्रेष्ठ!
    शायद, जब तलक कल्पनाओं में हो...…सुंदर रचना 🌷🌹🌷

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    1. शुक्रिया, विनम्र आभार आदरणीया शकुन्तला जी।

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  2. कल्पनाओं का सुन्दर,काव्यात्मक चित्र....बढ़िया!

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  3. बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ आदरणीय सर,लाजवाब अभिव्यक्ति। सादर प्रणाम 🙏

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    1. आभार आँचल जी। बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।

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  4. प्रेम पगी, मधुर संगीत के जैसा ... अच्छा लगता है डूबना ।

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    1. शुक्रिया अमृता तन्मय जी। आपने सराहा, रचना सफल हुई।

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  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-4-21) को "काश में सोलह की हो जाती" (चर्चा अंक 4035) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  6. पंक्तियां का बहुत ही गहरे भाव

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    1. शुक्रिया आभार आदरणीय सवाई सिंह राजपुरोहित जी ...स्वागत है आपका।

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  7. नूतनवर्षाभिनंदन...
    नवीन वर्ष के नूतन पल से माँ अम्बे सबका कल्याण करे...

    जगतनियन्ता सबको शांति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि प्रदान करे...

    शक्ति आराधना पर्व चैत्र नवरात्रि पर माँ दुर्गा की स्नेहदृष्टि आप सब पर बनी रहे

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  8. कल्पना के पंखों पर सवार होकर कवि अपना एक लोक गढ़ लेता है और बचा रखता है उसमें काव्य की सरसता को !

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